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________________ ३०६ कासा बचानसमे , 7 अत्र यापच्छच्देन - 'ईहामृगेत्यनन्तर - नृपभतुरगमवर निगव्यालकवि भररुक शरभ कुअर नलतापघलता ' इतिपाटस्य ग्रहणम् । ईहामृगोः, रुरुशरमौ । मृगजातिविशेषौ अन्ये स्पष्टार्थाः तेपा भक्त्या चित्ररचनया चित्रम्-आश्रर्य जनम् ' महग्घ ' महार्थ - महामूलक ' महरिह ' महार्द महता योग्य, विपुल विस्तीर्णम्, ईदृश पुष्पमण्डप विरघयत कुरुतेत्यर्थः । तस्य पुष्पमण्डपस्य खल्ल वहुमध्यदेशभागे - सर्वथा मध्यभागे एक महत् श्री दामकाण्ड यावत् पाटलादिपुष्प समूहसहितगन्धत्राणि गन्धतति मुञ्चत्-मददत् ' उल्लोयसि ' उल्लोचे = चन्द्रा तपे वस्त्रनिर्मितगृहाभ्यन्त रिवावरणे -' ओल्नेह ' अवलम्पयत भोलबित्ता अब 1 महग्ध महरित विपुलं पुष्फमडव विरएर ) इस के अनन्तर वे सब जलथल के विकसित पचवर्णों के पुष्पो से और अनेक प्रकार के चित्रों की रचना से सुशोभित एक पुष्प मडप बनावे, इस मडप को वे इस मृग, मयूर, क्रौंच, सारस, चक्रवाक, मदनशाल कोकिल इन सब के चित्रों से सुशोभित करें ईहा मृग-घृक, घृषभ, तुरंग, मकर, विहग, व्यालक - सर्प, किन्नर, एए, शरभ, कुजर - वनलता और पद्मलता इन के चित्रों की रचना से उसे आश्चर्य कारक बनायें । वह पुष्प मडप कीमती महारुपों के योग्य, एव विस्तीर्ण हो ऐसा बनावें । (तम्ण बहुमज्झदे सभाए एग मह सिरिदामगंड जाव गंध वर्ण मुयत उल्लोल यसिओलवेर, ओलवित्ता पउमावड़ देवीं पडि वाले माणा २ चिह, तएण ते कोडबिया जाव चिट्ठति ) और उस के ठीक मध्य भाग मे तने हुए चदोवा के नीचे एक वडा भारी श्रीदाम અને ત્યાર બાદ જળથળ ના વિકાસ થયેલા પચવણના પુષ્પાથી તેમજ જાત જાતના ચિત્રોની રચનાથી શેલતા એક પુષ્પ ના માડવે બનાવે હસ, મૃગ, માર, કૌચ, સારસ, ચક્રાવાક મડનશાલ અને કૈા 1લ આખધા પશુ પખીએ ના ચિત્રો થી માડવાને શણગાર તથા મહામૃગ, વરુ, ખળદ, ઘેાડા, भगर, पक्षी व्यास, ( सर्व ), डिन्नर, रुरु, शर हाथी, वनसता, अने પદ્મલતાના સુદર ચિત્રોથી માડવાને અદ્ભુત રીતે સુશોભિત કરા પુષ્પમ ૩પ કિંમતી તેમજ મહાપુરુષોને ચેાગ્ય વિશાળ હાવા જોઈએ ( तस्स ण बहुमज्झदेसभाए एग मह सिरिदामगडं जाव गधद्धणि मुयत उल्लोलयसि ओलवेह, ओलबित्ता पजमावइ देवी पडिवाळेमाणा २ चिट्ठा, तएण ते कोडुनिया जाव चिट्ठति ) અને તાણેલા ચદરવાની નીચે ઠીક મધ્યભાગમાં નાકને પોતાની સુવાસ થી નૃત્ય કરાવનાર એક, બહુ મેાટા શ્રીદામકાડ લટકાવે
SR No.009329
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1120
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size34 MB
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