SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 390
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मूलम्-तएणं ते महबलवज्जा छप्पिय देवा ताओ देव. लोगाओ आउक्खएणं भवक्खएणं ठिईक्खएणं अणंतरं धयं चइत्ताइहेवजंबूद्दीवे दीवे भारहे वासे विसुद्धपिइमाइवसेसु रायकुलेसु पत्तेय पत्तेयं कुमारत्ताए पच्चायायासी, त जहा पडिबुद्धी इक्खागराया, बदच्छाए अगराया, सखे कासिराया, रुप्पी कुणा• लाहीवई,अदीणसत्तूकुरुराया, जितसत्तू पचालाहिवई। सू०९ ॥ टीका-'तएण ते' इत्यादि । ततस्तदनन्तर ते महाबलाः पडपि देवास्त स्माद् देवलोकाद् जयन्ताद् विमानाद् । 'आउखएण' आयुः क्षयेण-देवसम्बन्धिन आयुष्पर्मदलिकनिर्जरणेन, देवसम्पन्ध्यायुः क्षयेण 'भास्सए ' भगक्षयेण भवनि बन्धनभूतकर्मणा गत्यादीना निर्जरण ठिइक्खएण' स्थितिक्षयेण देवसम्बन्धि स्थितिक्षयेण तेनानन्तर चय=देवशरीर त्यत्तया इहैव जम्बुद्वीपे नाम्नि द्वीपे 'तएण ते महन्यलपज्जा छप्पियदेवा' इत्यादि । टीकार्थ-(तएण) इसके योद (ते महव्यल वज्जिया) महाबल के सिवाय वे ( छप्पिय देवा ) छरो देव (ताओ देवलोगाओ आउक्खएण भवक्खएण ठिइक्खएण) उस देवलोक से जयन्त विमान से-देवलोक सबन्धी आयु कर्म के दलिको की निर्जना हो जाने से अर्थात् देव पर्याय सबन्धी आयु के क्षय हो जाने से भव के कारण भूत गत्यादि कों की निर्जना हो जाने से स्थिति के क्षय हो जाने से ( अणतर ) उसी समय (चय चहत्ता ) देव शरीर को छोड़कर (इहेव जद्दीवे हीवे भारहे वासे ) इसी जवू द्वीप नाम के द्वीप में, भारतवर्ष मे-भरत क्षेत्र में 'तएण ते महब्बल बज्जा छप्पिय देवा ' त्याल टी-(तएण) त्यामा (ते महब्बल वज्जिया) महाम सिवाय ते (छप्पियदेवा) । (ताओ देवलोगाओ आउक्खएण भवक्खएण ठिइक्खएण) તે દેવલેકના જયત વિમાનથી દેવલેક સ બ ધી આયુ કર્મના દલિકેની નિર્જરા થઈ જવાથી એટલે કે દેવ પર્યાપ સ બ ધી આયુષ્ય ક્ષય થવાથી ભવના કારણ ભૂત ગતિ વગેરેની નિજ રા થઈ જવાથી, સ્થિતિને ક્ષય હોવાથી (अर्णतर) a समय०४ (घयचइचा) व शरीरने छ।डीने (इश्व जबूहोवे दीवे भारहे वासे) पूरी५ नामना मेरद्वीपमा-भारत वर्षमा-मरत त्रमा
SR No.009329
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1120
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size34 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy