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________________ કર ताधकथा मुत्सादयति । ' इत्थिणामगोय' स्त्रीनामगोत्र यस्य कर्मण उदयात् सीमावः स्त्रीत्व माप्यते तत् सीनाम कर्म तथा-गोयं जाति कुल निर्वर्तक कर्म अनयो समा हारः स्त्रीनामगोत्र कर्म 'नियनिसु' निर्वतितवान् उपार्जितवान् ॥ ०४ ॥ मूलम्-जइण ते महव्लवना छ अणगारा चउत्थं उक्सपज्जित्ताण विहरति, तओ से महव्वले अणगारे छह उवसंप. ज्जित्ताण विहरइ । जइणं ते महबलवज्जा अणगारा मुटुं उपसंपज्जित्ताण विहरंति, तओ से महब्बलअणगारे अट्टम उपसपज्जित्ताण विहरइ । एव अहमं तो दसम, अह दसम तो दुवालसं इमेहि य णं वीसाएहि य कारणेहि आसेविय वहुलीकएहिं तित्थयरनामगोयं कम्मं निव्वत्र्तिसु, त जहा (१) अरहत (२) सिद्ध (३) पवयण (2) गुरु (५) थेर (६) बहुस्सुए (७)तवस्सीसु । वच्छल्लयाइ (८) तेसि अभिक्खणं णाणोवओगे य ॥१॥ (९) दसण (१०) विणए (११) आवस्सए य (१२) सीलब्बए निरइयार । (१३) खणलव (१४) तव (१५) चियाए (१६) वेयावच्चे (१७) समाहीय ॥२॥ (१८) अप्पुन्वणाणगहणे (१९) सुयभत्ती (२०) पवयणे पभावणया। एएहि कारणेहि तित्थयरत्त लहइ जीओ ॥सू०५॥ क्या भेद होगा-इस प्रकार की भावना ने उस के हृदय में अभिमान उत्पन्न किया और इस अभिमान ने माया को जन्म दिया। जिस कर्म के उदय से जीव स्त्रीत्वपद प्राप्त करता है वह स्त्री नाम कर्म है तथा जातिकुल निर्वर्तक जो कर्म होता है वह गोत्र है । इस प्रकार के कर्म को माया के सद्भाव से अनगार ने उपार्जित किया। सूत्र "४" એજ મહાબલના મનમાં અભિમાન ને જન્મ આપે હતો અને એ અભિ માને જ માયાને પણ ઉત્પન્ન કરી હતી જે કમના ઉદયથી જીવ સ્ત્રીત્વપદ મેળવે છે તે સ્ત્રીનામ કમ છે તેમજ જે કર્મ જાતિકુલ નિર્વતક હોય છે તે ગેત્ર છે માયા ના સદૂભાવથી આ પ્રમાણે તે અનગારે આ જાતના કર્મનું GIनन ४ ॥ सूत्र “४" --
SR No.009329
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1120
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size34 MB
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