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________________ १९२ साधर्मस्था ततस्तदनन्तर खलु सा-उज्यिका नाम्नी पः धन्यस्य सार्थवारस्यैतमय वापि , तथेति कृत्वा-तथास्थिति कययित्वा 'पडिगुणेड' प्रतिश्रणोति नीकरोति । 'पडिसुणित्ता' प्रतिश्रुत्य-स्वीकृत्य धन्यस्य सार्थवाहम्य हस्तात् ' ते ' वान् पञ्चशाल्यक्षतान् गृहति गृहीत्वा 'एगतमरकामह' एकान्तमपक्रामति एकान्त स्थाने गच्छति 'एगतमयकामियाए ' एकान्तमपक्रमितायाः एकान्त गच्छन्त्या' मनसि 'इमेयारू' अयमेतद्प 'अन्झत्यिए' आध्यात्मिक -आत्माश्रयो या. वत्सकल्पासमुदपद्यत एवममुना प्रकारेण सलु निश्चयेन 'तायाण' तातस्य श्वशुरस्य (तायाण ) अत्र आदरार्थ बहुपचन, 'कोहागारंसि' कोठागारे 'वहवे ' बाव -अनेकसख्यकाशालिना 'पल्ला' पल्यका-पल्ययामाननिशेपा तैः 'पडिपुमा' मतिपूर्णाः भृतास्तिष्ठति सार्द्धनयमपाप्रमिताना धान्यानामेक पल्लक इत्यभिधीयते ते पल्लका वहव कोष्ठागारे भृताः सतीति भावः । 'त जया णं ' तद्__ (तएण सा उमिया धण्णस्स-तहत्ति एयम पडिसुणेइ) चलते समय उस ज्येष्ठ पुत्र वधू उज्झिका ने धन्य सार्थवार के " तथास्तु" कहकर इस कथनरूप अर्थको स्वीकार करलिया ( पडिसुणित्ता घण्णस्स सत्यवाहस्स हत्याओ ते पच सालि अक्खए गेण्इ) स्वीकार करके धन्य सार्थवाह के हाथ से उन पाच शाल्यक्षों को फिर उसने ले लिया। (गेण्डित्ता एगतमवक्कमइ) लेकर फिर वह वहा से एकान्त स्थान मे चली गई । (एगतमवकामियाए इमेयारूवे अज्झथिए ) वहा ओकर उसने ऐमा विचार किया-(पव खलु तायाण कोट्ठागारसि वहवे पल्लासालि ण पडिपुण्णा चिति)तात-श्वशुरजी-के कोष्ठाचार में-अनेक चावलो के पत्यक भरेहए रक्खे हैं । यहा पत्यक एक प्रमाण विशेष का नाम है। यह ३॥) मन का होता है। त जयाण ममताओं सापाने तभने पानी मा मापी (तएण सा उझिया धण्णस्स तहत्ति एयम पडिसुणेइ) ती मते भाटा पुत्रनी १५ मे पन्य साथ पाने सा३ ' ( तथा ) मा हान तनी माज्ञान म्वरी (पडिसुणित्ता धण्णस सत्यवाहस्स .याओ ते पच सालिअक्सए गेण्हइ) माज्ञा स्वीय पछी ધન્ય સાર્થવાહના હાથથી તેમણે પાચ શાલિકણે લઈ લીધા (गेण्हित्ता एगतमवक्कमइ ) शासि , सधने व त्याथी सात स्थान त२५ ती २ही (एगतमवकमियाए इमेयारुवे अज्झथिए०) त्या मे, त२५ भावाने तो विया२ -( एव सलु तायाण कोटागार सि वहवे पल्लासालिण पडिपुण्णा चिटुति ) " भा२१ असरानी २मा यामाना ! यी मरे। છે ( ૫૮૫ક એક પ્રમાણ વિશેષનું નામ છે તે કા મનુ હોય છે ) (ત
SR No.009329
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1120
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size34 MB
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