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________________ होताधर्मकथा अर्थादेतदवसम्मनैव सर्वस्यापि कुटुम्बस्पारस्थानम् ' पमाणे' प्रमाणम् प्रत्यक्षादि प्रमाण रद् वरतुतत्वप्रतियोधकः 'आधारे' आधार-आधारयत् कुटुम्यादीनामाश्रय 'आलपणे' आरम्मन रज्यादिपत् विपद्गर्तपतज्जनोद्धारकतयाऽवलम्बनम् ' चक्षु' चक्षुः नेन तद्वत् सकलायक , यदुक्त ( मेधि प्रमाणमाधार आलम्पन चक्षुरिति । तदेव रपप्टयोधार्थमौपम्यवाधिभूतश इसमेलनेन पुनरावर्तयति मेधिभूतः इत्यादि, यावदिति -- यावन्उन्टेन ( पमाणभूए आहारभूए आपणभूए चरसूभूए ) इत्येपा सग्रहो गोध्यः अर्थत पुनरुक्तिदोष वारण तु पूर्वन मेधिरिति आरोपित मेधित्वयानित्याद्यर्थेन यो यम् । सबकन्जन डावए ' सर्व कार्यवर्धक:- सर्वेपा कार्यागा, वर्धका सम्पादोऽस्मि. 'त' तद् प्रमाणरूप है। वीहि कव आदिके कणों को मर्दन करने के लिये पशु जिस स्तभ में बाधे जाते हैं उसका नाम मेधी है । मेघी के सहारे से जिस तरह पशुओं का अवस्थान रहता है उसी तरह उसके सहारे से समस्त कुटुयका अवस्थान था इमलिये इसे मेधीरुप कहा गया है । प्रत्यक्ष आदि प्रमाण जैसे घस्तुतत्व के प्रतियोधक रोते हैं उसी तरह यह भी सब के लिये वस्तु का वास्तविक स्वरूप समझा दिया करतो था अत• इसे प्रमाण रूप प्रकट किया है । मैं ही कुटुम्ब आदिका आश्रय भूत हू, रज्ज्यादिक की तरह विपत्तिरूप खड्डे में पतित जनो का उद्धारक होनेके कारण में उनका अवलयन रूपढ़े। चक्षु जिस प्रकार सामने के पदार्थ का यथार्थ प्रकाशन करता है उसी तरह यह भी मनुष्यों को राय लेने पर वास्तविक वस्तु के रहस्य से परिचित्त करा देता था। अतः इसे यहाँ चक्षुरूप कहा गयो है इसीलिये (चक्खु मेढीभूए जाव सव्वकज्जवड्डाबार) मेधि प्रमाण, બળદો જે થાભલાને બાંધવામાં આવે છે તેનું નામ મેથી છે એધી જેમ પશઓને માટે ખાસ કેન્દ્રરૂપમાં રહેલે આધાર છે તેમજ તેપણે બધાને માટે મેથી રૂપ હતે પ્રત્યક્ષ વગેરે પ્રમાણે જેમ વસ્તુના તત્ત્વને બતાવનારા હોય છે તેમજ ધન્યસ થ વાહ પણ બધાને દરેકે દરેક વસ્તુનું સાચું સ્વરૂપ સમજાવતો હતું તેથી તેને પ્રમાણે કહ્યું છે કુટુંબને હું જ આશરે છુ હુ જ ઉંડા ખાડામાં પડેલા માણસને દેરીની જેમ ઉદ્ધારક છું એથી હું તેમના માટે અવલ બન (આધાર) રૂ૫ છુ ચક્ષુ જેમ સામેની વસ્તુને પ્રકાશિત કરે છે તેમજ તે પણ સલાહ માટે આવેલા માણસોને વસ્તુને साया २९स्ययी पाडे ४२तेतो मेटसा भाटे (चक्खुमेढीभूए जाव सव्वकज्जयावए) भपि प्रमाण माधार मा मन भने यar - पानी
SR No.009329
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1120
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size34 MB
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