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________________ अनगारधर्मामृतवर्षिणी टीका अ० ५ इन्द्रभूते जीवविषये प्रश्न महियाले तिनेसु जाव विमुक्तवधणे अहे धरणियलमइवइत्ता उप्पि सलिलतलपट्ठाणे भवइ । १७५ एवमेव गोयमा । जीवा पाणाइवायवेरमणेणं जाव मिच्छादसण सल्ल वेरमणेणं अणुपुव्वेणं अट्टकम्मपगडीओ खवेत्ता गगणतलमुप्पइत्ता उप्पि लोयग्गपइडाणा भवति, एव खलु गोयमा । जीवा लहुयत्त हव्वमागच्छंति, एवं खलु जंबू । समणेण भगवया महावीरेणं छट्ठस्स नायज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्तेति वेमि ॥ सू० ३ ॥ ॥ छटुं नायज्झयणं सम्मन्त ॥ ६ ॥ " टीका -- अथ खलु गौतम ! तत्तुम्व तस्मिन् ' पढमिल्लुगसि ' प्रथमे मृति कालेपे ' तिम्नसि स्तिमिते आर्द्रता माप्ते ततः 'कुहियसि ' कथिते विनष्टे 'परिसडियसि' परिशटिते - बन्धनमुक्ते सति, ईषत् स्तोक धरणीतलाद् उत्पत्यउभूष खलु तिष्ठति । ततोऽनन्तर च खलु द्वितीयेऽपि मृत्तिकालेपे यावदुत्प 'अण गोयमा' इत्यादि । टीकार्य - ( अहणे गोयमा ) हे गौतम । जैसे (से तुवे तमि पढमि लुगसि महियाले सि तिन्नसि कुहियसि परिसडियसि ईसि धरणिय लाओ उपइतोण चिट्ठह ) वह तुबी अपने ऊपर का पहेला लेप जब आई ( गिला ) हो जाता है, कूथित विनष्ट हो जाता है- परिशटित बधन मुक्त हो जाता है तब नीचे से कुछ ऊपर को उठ जाती है ( तयणतरच ण दोच्चपि मट्टियालेवे जाव उप्पादन्ताण चिट्ठ -- ( अहण गोयमा । ) छत्यादि ! टी अर्थ - ( अण गोयमा ) हे गौतम! भ सेतुबे तसि पढमिल्लु सिमट्टियाले सि तिन्नसि कुहिय सि परिसडियसि ईसिं धरणियलाओ उत्पन्ताण चिट्ठइ) पालीमा डूजी गयेसी तुणीनी (यरनो पहेलो बेय न्यारे पालीथी भाई यह लय छे-थित-नाश-यामे छे, परिशरित- भुक्त य लय हे त्यारे ते नीचे थी ४६ थोडी उपर भावे छे, ( तएणतर च र्ण दोच्चपि मट्टियाले
SR No.009329
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1120
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size34 MB
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