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________________ अनगारधर्मामृतवपिणो टीका अ० ५ शैलकराजमपिवरितनिरूपणम् १६३ टीका-'तएण' इत्यादि-ततस्तदनन्तर पान्थावर्जाः पञ्चअनगारशतानि-पान्धक रहिताः पञ्चशतमख्यका अनगारा एकोनपञ्चशतसख्यका अनगारा इत्यर्थः । 'इमीसे कहाए । अस्या स्थाया , ल्यवलोपे कर्मण्यधिकरणे चेति वार्तिकेन पञ्चमी । इमा स्थामारण्येत्यर्थः । ' लट्ठा'रब्धार्थाः माप्ताभिलपिताः सन्तः ' अन्नमन्न' अन्योन्य परस्पर 'सदावे ति' शब्दयन्ति आवयन्ति, शब्दयित्वाआहृय, एव वक्ष्यमाणपकारेण अवादिपुः-शैलको राजर्पिः पान्थकेनानगारेण साधं हि विद् विहरति, अत्र यावच्छन्देन-अन्भुज्जएण परत्तेण पडिग्गहिएण जणवयविहार इति पाठस्य सग्रह अस्य व्याख्या प्रागुक्ता । तत्-तस्मात् श्रेय: खलु हे देवानुमियाः अस्माक शैलक शैलकराजर्पिम् ' उपसपज्जित्ता उपसद्य 'तएण ते पथगवजा' इत्यादि ।। टीकार्थ-(तएण इसके बाद (ते पथगवजा पच अणगारसया इमीसे कहाए लट्ठासमणा अन्नमन्न सद्दावेति) वे पांथक वर्ज५००) सौ अनगार अर्थात् ४९९ चे साधु जो शैरक राजऋषि के शिष्य थे जब इस कथा को सुना-तो सुनकर अभिलपित अर्थ की प्राप्ति वाले बनकर उन्हो ने आपस में एक दसरे को बुलाया-(सदावित्ता एव वयासी) घुलाकर इस प्रकार विचार किया-(सेलए रापरिसी पथएण अणगारेण सद्धिं पहिया जाव विहरइ ) शैलक राजऋषि पांथक अनगार के साथ बाहर जनपदों में यावत् विहार कर रहे हैं। यहा यावत् शब्द से " अन्भुज्जएण पवत्तेणं पडिग्गहिएणंजणवय विहार " इस पाठ का संग्रह किया गया है। इन पदो की व्याख्या (तण्ण ते पथगवजा) इत्यादि ! थ-(तएण) तारा (ते पथगवज्जा पच अणगारसया इमीसे कहाए लद्धट्टा समाणा अन्नमन्न सदाति ) पायाने मा ४२ता भीort यारसा नवा રાજઋષિ શૈલકના શિષ્યઓએ જ્યારે આ બધી વિગત જાણું ત્યારે ઈચ્છિત અર્થની પ્રાપ્તિની અભિલાષા રાખતા તેઓએ એક બીજાને એક સ્થાને એકઠા य। भाटे मासा (सहावित्ता एव वयासो) मालाचीन में व्याये । थएन तो विया२ ४२११ साया, (सेलए रायरिसी पथएण अणगारेण सर्शि पहिया जाव विहरइ) शैक्ष४ सय ५५ सनगारनी साथे महार જનપદમા વિહાર કરી રહ્યા છે, मडी (यापन ) श छ तेनाथी ( अन्भुज्जए ण पवत्तेण पडिग हिएण जगवयविहार ) मा पाईना सम यो छ, म पहानी
SR No.009329
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1120
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size34 MB
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