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________________ अनगारधर्मामृतयर्पिणीटी० अ० ५ शैलकराजचरितनिरूपणम् सहस्रशिष्यैःसह पादपोपगमनमस्तारक कृतान् , ततः खलु स शुको पनि पाणि श्रावण्यपर्याय पालयित्वा केवलपरज्ञानदर्शने समुत्पाद्य सकल कर्मक्षये मति सिद्धः -मुक्ति प्राप्त इत्यर्थ ।। २८॥ मूलम्-तएर्ण तस्स सेलगस्स रायरिसिस्स तेहि अतेहि य पतेहि य तुच्छेहि यलूहेहि य अरसहि य विरसेहि ये सीएहिय उण्हेहि य कालातिकतेहि य पमाणाइक्कतेहि य णिच पाणभोयणेहि य पयइसुकुमालयस्स सुहोचियस्त सरीरगसि वेयणा पाउव्भूया, उज्जला जाव दुरहिया सा कडुयदाहपित्तज्जरपरिगयसरीरे यावि विहरइ, तएणं से सेलए तेणं रोयायकेण सुके जाए यावि होत्था, तएणं से सेलए अन्नया कयाइ पुव्वाणुपुवि चरमाणे जाव जेणेव सुभूमिभागे जाव विहरइ, परिसा निग्गया मडुओ वि निग्गओ सेलय अणगारंजाव वंदइ, नमसइ, वदित्ता नमस्सित्ता पज्जुवासइ, तएण से मंडुए राया सेलयस्स अणगारस्स सरीरयं सुक भुकं जाव सव्वावाह सरोग पासइ, पासित्ता एव क्यासी-अह णं भते । तुभ अहापवत्तेहिं तिगिच्छएहि अहापवत्तेणं ओसहभेसज्जेण भत्तपाणेणं तिगिच्छ आउटावेमि, तुम्भे ण भते मम जाणसालासु समोसरह फासुअ पर अपने सहस्र शिष्यों के साथ २ पादपोपगमन सथारा किया । इस तरह जन शुक अनगार ने अनेक वर्षों तक श्रामण्य पर्याय का परिपालन कर के अन्त समय में केवलज्ञान केवल दर्शन प्राप्तकर सफल कर्मो के क्षय होने पर मुक्ति को प्राप्तकर लिया। ।। सू०२८॥ સથારે કર્યો આ રીતે તે શુડ પરિવ્રાજકે ધણું વર્ષો સુધી શ્રમય પર્યાપન પરિપાલન કરીને છેવટે કેવળજ્ઞાન કેવળ દર્શન મેળવીને બધા કર્મો ત્યારે In ॥२ भुलित भणी ॥ सूत्र “२८" ॥
SR No.009329
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1120
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size34 MB
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