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________________ १२६ माताधकथासूत्र करित्ता य कारवित्ता य एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह, तएणं से मडुए राया दोच्चपि कोडुवियपुरिसे सदावंड, सदावित्ता एव वयासो-खियामेव भो । सेलगस्त रन्नो महत्व जाव निरखमणाभिसेय जहेव मेहस्त तहेव, र पउमावतीदेवी अग्ग केसे पडिच्छइ । सच्चेव पडिग्गह गहाय सीय दुरूहति, अवसेस तहेव जाव सामाइयमाइयाइ एकारस अगाई अहिज्जइ, अहिजित्ता वहहि चउत्थ जाव विहरइ, तएण से सुए सेलयस्स अणगारस्स ताइ पथगपामोक्खाई पच अणगारसयाइ सोसत्ताए वियरड, तएण से सुए अन्नया कयाइ सेलगपुराओ नयराओसुभूमिभागाओ पडिनिस्खमइ, पडिनिस्खमित्ता वहि या जणवयविहार विहरइ, तएण से सुए अणगारे अन्नया कयाइ तेणं अणगारसहस्सेण सद्धि सपरिवुडे पुव्वाणुपुत्रि चरमाणे गामाणुगाम विहरमाणे जेणेव पोडरीए पव्वए जाव सिद्धे ॥ सू० २८॥ 'तएण से सेलए ' इत्यादि। टीका-तत स शैलको राजा मण्डूक राजानमापृच्छति, हे देवानुपिय ! अह दीक्षा ग्रहीष्यामीती । तत खलु स मण्डको राजा कौटुम्बिरपुरुपान् आदेश कारिण पुरुपान् शब्दयति आवयति, शब्दयित्वा आहूय एव वक्ष्यमाणप्रकारे 'तएण से सेलए राया' इत्यादि । टीकार्थ-(तएण) इसके बाद (से सेलए राया) उस शैलक राजा ने (मड्डय राय आपुच्छ) मडूक राजा से पूछा कहा कि हे देवानुप्रिय। में दीक्षा सयम लूगा (तण्ण से महुए राया कोडषिय पुरिसे सद्दावेद) (तएण से सेलए राया) त्या --(वएण) त्यो२ मा (सेलराया) 01 पये (मड्य राय आपु इ) म. रानने - पानुप्रिय । दीक्षा Alstu (तएण से मडुए राया कोडु वियपुरिसे सदाइ) सार ५० म. समेटम
SR No.009329
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1120
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size34 MB
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