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________________ अनगारधर्मामृतपिंगी टीका अ० ५ शैलकराजचस्तनिरूपणम् १२३ प्यामः । हे देशानुपिय ! हे स्वामिन् ! यथाऽस्माक बहुपु कार्येपुराज्याधिकृतकार्येषु च कारणेपु-राज्यरक्षणोपायेषु च यावत्-तथा - खलु भवद्भिः सार्ध मनजितानामपि अमणाना बहुपु यावत् कार्यादिपु चक्षुर्भूतः । यथाऽस्माकमपिकतेषु भवान् विश्रामस्थान, राज्यकार्येशु भवानेव नेवतुल्यो नेताऽस्ति तथा चारित्र पाल्नकार्येष्यपि भवानेव नेताभरिप्यतीतिभावः । उद्विग्न हो कर दीक्षित होना चाहते हैं तो हे देवानुप्रिय ! अब हमलोगों का और कौन आपके सिवाय दूसरा आधार हो सकेगा कौन दुवा दिक के समय हमलोगों के लिये आलपन देने वाला होगा, क्योंकि हमारे लिये तो आपही एक शरण भूत है। अत जब आप दीक्षित होना चाहते है तो हम लोग भी ससार भय से उद्विग्न हो कर आप के साथ ही दीक्षा सयम धारण करेंगे। (जहा देवाणुप्पिया। अम्ह यहसु कज्जेसु य कारणेसु य जाव तराण पव्वतियणवि समणा ण यहुसु जाव चक्खुभूए) हे देवानुप्रिय ' जोस तरह आप हमलोगों के लिये अनेक राज्याधित कार्यो मे अनेक कारणों मे-राज्य सरक्षण के उपायो में-चक्षुभूत रहे हैं उसी तरह आपके साथ प्रवृजित हुए हमलोगों के चारित्र पालन कार्य में भी आप ही नेता रहेंगे। (तरण से सेलगे पथगपामोस्खे पचमतिसए एव वयासी) मत्रि मडल की इस प्रकार बात सुनकर उस शैलक राजा ने उन पायक प्रमुख पाचसो मत्रियों से इस प्रकार कहा.ત્રસ્ત થઈને દીક્ષા મેળવવાની ઈરછા રાખે છે તો તમારા સિવાય અમારે બીજે કે આવાર થશે ? આફતના વખતે અમને આશ્રય આપનાર કેણ થશે ? અમારે માટે તે તમે જ શરણ રૂપ છે, એટલે જ્યારે તમે દીક્ષિત થવાની ઈરછા રાખે છે ત્યારે અમે લેકે પણ આસ સાથ્થી કટાળી ગયા છીએ તમારી साथे ममे ५५ यम दीक्षा सयम पार उशशु ( जहा देवाणुप्पिया ! अम्ह वहुसु कज्जेसु य कारणेसुय जीव तहाण पबतियाणवि समणाण बहुसु जाव चम्सुभूए) डे पानुप्रिय ! तमे भी मार भाट ઘણા ગજવીટના મેમાં ઘણું કારણે મા-રાજ્ય સરક્ષણ વિષેના ઉપા મા ચકુભૂત રહ્યા છે તેથી અમારી સાથે પ્રત્રજિત થઈને પણ અમે લેકે ચારિત્રપાલન કાર્યમાં પણ તમે જ અમારા નેતા થઓ એવી અમારી ઇરછા छ, (तएण से सेलो पथगपामोक्खे पचम तिसए एव पयासी) भत्रीमा આ જાતના વિચાર સાભળીને તૈલક રાજાએ તે પાથર પ્રમુખ પાચસો
SR No.009329
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1120
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size34 MB
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