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________________ अनगारधर्मामृतवर्षिणी टीका अ० ५ स्थापत्यापुत्रनिर्वाणनिरूपणम् ११७ , 6 न्निनाय ' देवसनिपातनिर्माणाद्युत्सवसमये यत्र देवा समागत्य मिलन्ति, देवा ना सनिपातः समिलन यत्र त' पुढविसिकापट्टय पृथिवीशिलापटक प्रतिलेख free यात् ' पाओगमण पन्ने' पादपोपगमनमनुपात सहस्रशिध्यै सह पादपोपगमनसस्तारक कृतवान्। तत खलु स स्थापत्यापुत्रो नहूनवर्षाणि सामान परियाग श्रामण्यपर्याय वारिनपर्याय पाउणत्ता ' पालयित्वा नासिक्या सलेखनना पष्ठिभक्तानि अनशनेन ङिच्चा यावत् - केवलवरज्ञानदर्शने सति समुप्पाडेत्ता ' समुत्पाद्य जन्तसमये के लाना केवलदर्शन च समाप्य ततः पश्चात् सकलकर्मक्षने सिद्धः मुक्ति प्राप्तः यावत् बुद्धो मुक्त. सर्पदु ख प्रहीणः जन्मजरामरणादिदुः खरहितो जात ॥ २६ ॥ " गमण वने ) चढकर उन्हों ने मेघ सम्रह के समान कृष्ण वर्णवाले तथा निर्वाण आदि के उत्सव के समय जहा देव एकत्रित होते हैं ऐसे पृथिवी शिलापटक पर प्रतिलेखना कर पावत् पादपोपगमन सधारा धारण कर लिया। साथ के उन १ हजार साधुओं ने भी पादपोपगमन सारा ले लिया । (तएण से बावच्चात्ते बहुणि वासाणि सामन्न परि याग पाडणित्ता मासिया सटेरणा सट्ठि भत्ताइ अणसणाए छेदित्ता जाव केवलवरना दसण समुप्पाडेत्ता तओ पच्छा सिद्वे जाव पहीणे ) इस तरह उन स्थपत्यापुत्र अनगार ने अनेक वर्षो तक श्रामण्य पर्याय का पालन करके एक माल की सलेखना से साठ भक्तो का अनशन द्वारा छेदन कर पावत् अन्त समय मे केवल ज्ञान केवल दर्शन प्राप्त कर लिया । उन्हें प्राप्त कर फिर वे सफल कर्मों के क्षय होने पर सिद्ध बन गये । यहा यावत् शब्द से बुद्ध मुक्त सर्व दुःख प्रहीण जन्मजरा मरणादि दुख रहितो जोता " इन पदो का मग्रह हुआ है | सृ०२६॥ મેર સમૂડ જેવી ડાળી તેમજ નિર્વાણુ વગેરેના ઉત્સવના વખતે દેવે જ્યા એકઠા થાય છે એવી શિલાપર પ્રતિલેખના કરીને પાપાપગમન સ થારા સ્વીકાર્યો તેમની साथै थे ! इन्तर भाधुये पशु (ण से थावच्चापुत्ते बहूणि वासाणि सामन्नप रियोग पाउत्ति मासियाए सलेहणाए सट्ठि + त्ताइ अणसणाए छेदित्ता जाव केवलवर नाणदा सण समुपाडेचा तओपच्छा सिद्धे जोव पणे ) मा रीते स्थापत्यात्र અનગારે ઘણા વર્ષો સુધી શ્રાવણ્ય પયયનું પાલન કરીને એક મહિનાની સલેખનાથી સાઈઠ ભક્તોનુ અનરાન વડે કેદન કરીને છેવટે કેવળ જ્ઞાન કેવળ દર્શન મેળવ્યુ ત્યાર બાદ બધા કર્મો ક્ષય થયા ત્યારે તેમને સિદ્ધ પદ મળ્યુ सही ? 'यावत्' भाग्यो हे तेथी ( बुद्ध मुक सर्व दुसरहीण जन्म जरामरणादिदु खरहितो जात ) मा होना सग्रह थयो छे । सू६ ॥
SR No.009329
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1120
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size34 MB
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