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________________ अनेगारधर्मामृतवपिणी टीका अ० ५ सुदर्शन श्रेष्ठोवर्णनम् ८५ , ततः खलु स सुदर्शनस्त शुकमेजमानम् आगच्छन्त पश्यति, दृष्ट्वा 'नो अब्भुडे ' नो अभ्युत्तिष्ठति, अभ्युत्थान न करोतिस्म 'नो पन्चुग्गच्छछ' नो प्रत्युद्गच्छति अभिमुख न गच्छति, 'नो आढाइ ' नो अद्रियते आदर न कुरुते 'नो ' परियाणा ' नो परिजानाति = आगमन नानुमोदयति, नो वन्दते न स्तौति, 'तुसिणीए सचिव ' तृष्णीकः सतिष्ठति । , ततः खलु स शुरु परित्राजकः सुदर्शनमनभ्युत्थित दृष्ट्वा एवमवादीत्-त्व खलु सुदर्शन ! अन्यदा अन्यस्मिन् समये मामेजमान दृष्ट्वा अभ्युत्तिष्ठसि यावद् - नयरी मज्झ मज्झेण जेणेव सुदसणस्स गिहे जेणेव सुदसणे तेणेव उचागच्छइ ) बाहर निकल कर सौगधिका नगरी के ठीक बीचो बीच से होकर जहा सुदर्शन का घर और उसमें भी जहा सुदर्शन था वहा गया (तएण से सुदसणे त सुय एजमाण पासइ ) सुदर्शन ने आते हुए परिव्राजक को देखा (पासित्ता नो अब्भुट्टेड, नो पच्चुग्गच्छइ, णो आढाइ णो परियाणा नो वदह, तुसिणीए सचि ) परन्तु देखकर वह उठा नही उसके सामने नहीं गया, उसका आदर नही किया, उस के आगमन की उसने सराहना नही की । स्तुति भी नहीं की केवल चुपचाप बैठा रहा । (तएण से सुए परिव्वायए सुदसण अणभुट्टिय पासिता एव वयासी) जब शुक ने ऐसा देखा अर्थात् सुदर्शन को नही उठा हुआ, सामने नही आया हुआ, आदि रूप से देखा तो देखकर उसने उससे इस प्रकार कहा- तुम ण सुदक्षणा ! अन्नया मम एज्जमाण पासित्ता अभुद्वेसि जाव वदसि इयाणि सुदसणा । तुम मम जेणेव सुदसणस्स गिहे जेणेव सुदसणे तेणेव उवागच्छइ ) महार नीजीने સૌગ ધિકા નગરીની બરાબર વચ્ચે થઈને જ્યા સુદાનનુ ઘર અને તેમા પણુ न्या सुहरान हतो त्या गयो ( तएण से सुदसणे त सुय एज्जमान पासइ ) सुदर्शने पशु परिनाभने भावता लेया ( पासित्ता नो अब्भुट्ठेइ, नो पच्चु गच्छ, णो आढाइ, णो परियाणाइ, नो वदइ, तुसिणीए सचिदुइ) ५२ तु ले ને તે ઉભા થયા નહિ, સ્વાગત માટે તેની સામે ગયા નહિ, તેને આદર આયા નહિ, તેના આગમનની તેમણે સરાહના કરી નહિ, તેની સ્તુતિ પણ मेरी नहि तेथे सुपयाय पोतानी भग्यामे मेसी ४ रह्या (तरण से सुप परिव्वायत सुदसण अणभुट्टिय० पासित्ता एव वयासी ) शु परिनान} शेडने सत्ार भाटे पोतानी सामे नही भावता लेने सुदसणा ! अन्नया मम एज्जमाण पासित्ता अन्भुट्ठेसि जाव छु - (तुम ण वदसि इयाणि
SR No.009329
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1120
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size34 MB
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