SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 152
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७४ हाताधर्मकथागतो व्रतेऽन्तर्भावात् चाउज्जामो धम्मो इति वचनात् चत्वारि आणुनतानि, चत्वारि महानतानि आसन् इति विशेषः । तन खलु यः सोऽनगारविनयः स खलु पञ्च महाातानि, तद्यथा-सर्वस्मात् प्राणाविपाताद विरमण१, सर्वस्माद् मृपानादाद निरमण२, सर्पस्माद् अदत्तादानाद् पिरमण३, सर्पम्मात् परिग्रहाद् विरमण । सर्वस्माद रात्रिभोजनाद् विरमण, यात्रन्मिल्यादर्शनल्याद् विरमण, दशविध प्रत्याख्यान द्वादशभिक्षुमतिमा., इत्येतेन द्विविधन, पिनयमूलकेन धर्मेण 'अणुपुत्वेण ' अनुपूज्र्येण क्रमेण 'अहम्मपगडीनो' अष्टकर्ममरुती: ज्ञाना वरणीयाद्यष्टकर्मप्रकृतीः 'खवेत्ता' क्षपयित्वा ' लोयग्गपइट्ठाणा' लोकायप्रति पाचवें परिग्रहविरमणव्रत में अन्तर्भाव होने से ' चाउज्जामो धम्मो' इस वचन से चार अणुव्रत और चार महाव्रत कहे गये हैं। (तत्थ ण जे से अणगारविणए से णं चत्तारि महन्वयाइ त जहा) इसी तरह जो अनगार विनय है वह चार महावत रूप है जैसे (सव्वाओ पाणाइवायाओ वेरमण सव्वाओ मुसावायाओ वेरमण सव्वाओ अदिन्नादाणाओ वेरमण,सव्वाओ परिग्गहाओ वेरमण, सव्वाओ भोयणाओ वेरमण जाव मिच्छादसणसल्लाओ वेरमण) समस्त प्राणातिपात से विरमण, समस्त मृपागाद से विरमण समस्त अदत्तादान से विरमण, समस्त परिग्रह से विरमण होना इन चार प्रकार के महाव्रतरूप तथा समस्त रात्रि भोजन से विरमण यावत् मिथ्यादर्शन शल्य से विरमण होना इन रूप तथा (दसविहे पच्चक्खाणे चारसभिक्खुपडिमाओ दस विध प्रत्याख्यान रूप और १२ बारह भिक्षु प्रतिमा रूप है ( इच्चेएण दुविहेण विणयमूलएण धम्मेण अणुपुत्वेण अट्ट कम्मपगडीओ खवेत्ता पायमा परियड विरभ व्रतमा सन्तल वाथी " चाउज्ज्ञामो धम्मो" से क्यनथी या२ मानत भने थारमारत या छ (तत्थ ण जे से अणगार विणए से ण चत्तारिमव्वयाइ त जहा) मा रीते १ मना२ पिनय पार यार महानत ३५ छे रेभ (सव्वाओ पाणाइवायाओ वेरमण सव्वाओ मुसावायाओ वेरमण सव्वाओ अदिन्नदाणाओ वेरमण सव्वाओ परिग्गहाओ वेरमण सव्वाओ राइ भोयणाओ वेरमण जाय मिच्छोद सणसल्लाओ वेरमण) स४ प्राथातिपातथी विर મવુ સકળ મૃષાવાદ (અસત્યભાષણ) થી વિરમવુ, સકળ અદત્તાદાનથી વિરમવુ, અને સકળ પરિગ્રહથી વિરમગુ આ ચાર જાતના મહાવત રૂપ છે રાત્રિ सोनयी विरभवु यात भिथ्याशन शयथी वि२भित थयु, (दसविहे पच्च क्खाणे बारसभिक्खुपडिमाओ) शिविध प्रत्याभ्यान३५ गते मा२ प्रतिभा३५ छे (इत्चेएण दुविहेण विणयमूलएण धम्मेण अणुपुव्वेण अट्ठ कम्मपगडीओ सवेत्तों
SR No.009329
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1120
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size34 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy