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________________ ઢ ज्ञाताधर्मकथासूत्रे = शुरुः परिप्राजकस्तस्या परिपद सुदर्शनस्य च अन्येषा च बहूना जनाना पुरस्तात् साख्याना = साख्य मतानुयायिन धर्म परिकथयति हे सुदर्शन ! एव वक्ष्यमाण प्रकारेण खलु अस्माक शौचमूलको धर्मः प्रज्ञप्तः, तदपि च शौच द्विविध मशप्त तद्यथा - द्रव्यशौच च भावशौच च । द्रव्यशौच च उदकेन जलेन मृत्तिकया च भवति । भावशौच 'दभे हि य' दर्भेव, ' मते हि य' मन्त्रैश्च भवति । हे देवानुप्रिय | यत् खलु अस्माक किंचित्-करचरणकमण्डलु प्रभृति अशुद्ध भवति तत् सर्व ' सज्जो पुवीए ' सद्यः पृथिव्या = शुद्रनवीनमृत्तिकया, आलिप्यते अनुलिप्त क्रियते, ततः पश्चात् शुद्धेन पवित्रेण, चारिणा - जलेन प्रक्षालयते ततस्तदशुद्ध उपहत वस्तु शुद्ध भवति । एव खलु जीवाः ' जलाभिसेयपूपाणी 'जला य अन्नेसिंच बहण सखाण धम्म परिकहेइ ) नगर निवासी परिषद् उसके पास जाने के लिये अपने २ घर से निकली। सुदर्शन भी निकला इसके बाद उस शुक्र परिव्राजक ने उस आगत परिषद् को सुदर्शन सेठ को तथा और भी एकत्रित हुए अनेक मनुष्यों को साख्यों के धर्म का उपदेश दिया । उसमें उस ने इस प्रकार कहा ( एव खलु सुदसणा अहं सोयमूले धम्मे पण्णत्ते ) हे सुदर्शन हमारा धर्म शौच मूलक प्रज्ञप्त हुआ है (सेविय सोए दुविहे पण्णत्ते) वह शौच भी दो प्रकार का कहा हुआ है- ( दव्वसोए य भावसोए य ) १ द्रव्य शौच २ भाव शौच । (coaमोएय उदएण महियाए घ) जल और मिट्टी से द्रव्य शौच होता है । (भावसोए दमेहिं य मते हिं य) भावशौच दर्भ और मत्रों से होता है । ( जन्न अम्ह देवाणुप्पिया । किंचि असुह भवइ त सव्व निग्गवा, सुदक्षणो निमाए तरण से सुए परिव्वायए तीसे परिसाए सुदंसणस्स य अन्नेसि च बहूण ससाण धम्म परिकहेइ ) नागरीओनी परिषह तेनी पासे જવા પાત પેાતાને ઘેરથી નિકળી સુદર્શન પણુ પાતના ઘેરથી ત્યા જવા માટે ખહાર નીકળ્યે ત્યાર પછી શુક પરિવ્રાજ કે ઉપસ્થિત થયેલી નગરીકે ની પરિષદ સુદર્શન તેમજ બીજા એકઠા થયેલા માણસેાની સામે સામ્યમ ના ઉપદેશ આપ્યા. ઉપદેશ આપતા શુક પરિવ્રાજકે આ પ્રમાણે કહ્યુ (વ सलु सुदु सणा अम्ह सोयमूले धम्मे पण्ण ) डे सुदर्शन ! अमारो धर्म शीय હૈ भूस अज्ञस थयो छे ( सेविय सोए दुविहे पण्णत्ते ) शौयना मे प्रहार छे ( दव्वसोए य भावसोए य ) १, द्रव्य शीय, २, लाव शोथ ( दव्वसोए य eer after a मने भाटीथी द्रव्य शौय थाय छे ( भावसोए भाह य महि F हल' अने भ त्रीवडे थाय छे (जन्न अम्हें
SR No.009329
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1120
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size34 MB
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