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________________ ४८ -- - - - शाताधर्मकथासत्रे जइयव्वं जाया । घडियव जाया। परिकमियव्य जाया। अस्ति च णं अट्टे णोपमाएयव्व जामेवदिसि पाउन्भूता तामेव दिसि पडिगया ॥ सू० १६ ॥ 'तएण से कण्हे ' इत्यादि। टीका-ततः खलु स कृष्गवासुदेवः स्थापत्यापुन पुरत. 'काउ' कृत्वा यत्रैव अर्हन् अरिष्टनेमिः, तत्रैवोपागच्छति अपमुञ्चति । उपागम शेप सर्व तदेव शेष आदक्षिणपदक्षिणादिक सर्व चरित यत् खलु मेवकुमारस्य, तदेवान वाच्यम् । स्थापत्यापुनोऽहतोऽरिष्टनेमे समीपादीशानकोणदिग्भागे स्वयमेव 'आभरणम ल्लालकारे' आभरणमाल्यालङ्कारान् 'ओमुयइ ' अवमुश्चति भरतारयति । ततः खलु सा स्थापत्यागाथापत्नी हमलक्षणेन हसस्वरूपेण शुक्लपर्णेन 'पडगसाडए ण' पटशाटकेन पृथुलपस्त्रेण आभरणमाल्पालङ्कारान् प्रतोति प्रतिगृहाति । तण्ण से कण्हे वासुदेवे इत्यादि ॥ टीकार्थ-(तएण) इसके बाद ( से कण्हे वासुदेवे ) वे कृष्णवासुदेवे (धावच्चा पुत्त) स्थापत्या पुत्र को (पुरओकाउ ) आगे करके (जेणेव अरिहा अरिहनेमि तेणेव उवागच्छइ ) जहा अहंत अरिष्टनेमि प्रभु थे वहा गये (उवागच्छित्ता सेस मव्य त चेव आभरण० ) वहा जाकर उन्हों ने प्रभु की आदक्षिण प्रदक्षिणा पूर्वक वदना की। मेघकुमार ने दीक्षा अगीकार करते समय जो कुछ किया वह सब वहा स्थापत्या पुत्र ने भी किया बाद मे स्थापत्या पुत्रने अरिष्टनेमि प्रभु के पास से ईशानकोण में जाकर स्वय ही अपने माला और अलकारो को उत्तारा (तएण से) इस समय वहां उपस्थित रही हई उसकी माता गाथा पत्नी ने हस के जैसी शुक्लवर्णवाली अपनी पटशाटिका में उनअवता (तएण से कण्हे वासवे इत्यादि ) ॥ थ-(तएण) त्या२६ (से कण्हे वासुदेवे) वासुदेव (थापच्चा पुत्त) स्थापत्या पुत्रने (पुरमो काउ ) भाग शमीन (जेणेर अरिहा अस्ठुिनेमी तेणेव उवागच्छइ) या मत मारिष्टनाभि प्रसुता त्या गया ( उवागन्छित्ता सेस सय त चे आभरण० ) त्या सधन ती प्रभुनी माक्षिष्य प्रह ક્ષિણની સાથે વદના કરી મેઘકમારે દીક્ષા વખતે જે કઈ કર્યું હતું તે બધુ સ્થાપત્યા પુત્રે પણ કર્યુ ત્યાર બાદ સ્થાપત્યા પુત્રે અરિષ્ટનેમી પ્રભુની પાસેથી शान मा त माया अने पाया तार्या, ( तएण से) ते વખતે તેની માતા સ્થાપત્યાગાથાપની ત્યા હતી તેમણે હ સ જેવી સ્વચ્છ સફેદ
SR No.009329
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1120
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size34 MB
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