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________________ अनगारधर्मामृतवर्षिणी टीका अ० ५ स्थापत्यापुत्र निष्क्रमणम् પ • तथोच्चै स्वरेण दुन्दुभ्यादिनायैः सह भारण कुरुतेत्यर्थः । यानद् घोषयन्ति । कृष्णवासुदेवस्यादेशानुसारेण आदेशकारिणः पुरुषाः द्वारावत्यां नगर्या घोषणा कृतवत इत्यर्थ' ॥ म्रु० १४॥ मूलम् -तएण थावच्चापुत्तस्स अणुराएण पुरिससहस्सं निक्खमणाभिमुह पहाय सव्वालकारविमूसिय पत्तेय २ पुरिससहस्तवाहिणीसु सिवियासु दुरूढ समाणं मित्तणाइपरिवुड थावच्चापुत्तस्स अतिय पाउन्भूय, तएण से कण्हे वासुदेवे पुरिससहस्समतिय पाउव्भवमाण पासइ, पासित्ता कोडुवियपुरिसे सदावेइ, सदावित्ता एव वयासी जहा मेहस्स निक्खमणाभिसेओ तहेव सेयार्पाएहि (कल सेहि) पहावे, महावित्ता जाव अरहतो अरिट्टनेमिस्स छत्ताइच्छत्त पडागातिपडाग पासइ, पासित्ता विज्जाहरचारणे जाव पासित्ता सिवियाओ पच्चोरुहइ ॥ सू० १५ ॥ टीका- 'तएण ' इत्यादि । स्थापत्यापुनस्य अनुरागेण = स्नेहेन पुरुषमहस्र निष्क्रमणाभिमुख स्नात सर्वालङ्कारनिभूपित प्रत्येक प्रत्येक पुरुषसहस्रवाहिनीपु के समस्त मनुष्यो के कर्णे गोचर हो सके इस तरह से बडे २ जोर से दुदुभि आदि बाजो के साथ करो । इस तरह कृष्णवासुदेव की इम आज्ञा को उन आदेश कारोपुरूषो ने प्रमाणभूत मान कर उसे द्वारावती नगरी मे घोषित करके सुना दिया। सूत्र 46 १४ " तएण थावच्चा पुत्तस्स ' इत्यादि । 6 टीकार्थ - (तरण ) इसके बाद (यावच्चापुत्तस्स अणुराण) स्थापत्य पुत्र के अनुराग से ( पुरिससहस्स ) १ हजार पुरूष (निक्समणाभि સુધી આ વાત સારી રીતે પહોંચી કે તમે મેટેથી દુદુભિ વગેરે વાજાએ વગાડે અને આ વાતની ઘેાષણા કરી કૃષ્ણ વાસુદેવની આજ્ઞાને કૌટુ બિક પુરુષાએ સપ્રમાણ માનીને દ્વારાવતી નગરીમાં તેની ઘેાષણા કરી ॥ સૂત્ર ૧૪ ( तण धावञ्चापुतस इत्यादि ) टीजर्थ -- (तरण ) त्यारणाह ( यावच्चापुतरस अणुराएण ) स्थापत्यात्र भये विशेष प्रेम होवाने जर ( पुरिस सहस्स) भे: उत्तर पुरुषों (निक्स
SR No.009329
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1120
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size34 MB
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