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________________ अगरधर्मामृतपणी टी० अ० १३ नन्दमणिकारभवनिरूपणम् GA रिणीए वहवे सुणाहा य अणाहा य पथिया य करोडिया य कृप्पडिया य तणहारा य पत्तहारा य कट्ठहाराय अप्पेगइया पहायंति अप्पेगइया पाणिय पियति, अप्पेगइया पाणिय सबहति अप्पेगइया विसज्जिय सेय जलमल परिस्समनिदखुष्पिवासा सुह सुहेणं विहरति । रायगिहविणिग्गओ वि जत्थ बहुजणो किं ते जलरमणविविहमजणकय लिलयाघरय कुसुमसत्थरय अणेग सउणगणरूयरिभियसकुलेसु सुहसुहेणं अभिरममाणो २ विहरड़ ॥ सू० ४ ॥ टीका- 'तरण गदे ' इत्यादि । तत खलु नन्दः श्रेठी दाक्षिणात्ये वनपण्डे एका महतीं महानसशाला - पाकशाला कारयति । कीदृशीम् १ इत्याह' अणेग' इत्यादि - अने व सम्भगतसनिविष्टा यावत्पतिरूपाम् । तत्र खलु बहवः पुरुषा दत्तभृतिभक्तवेतना' = पारिश्रमिकदानेन नियुक्ता पाककर्मकराः विपुलम् 'तपण दे दाहिणिल्ले ' - इत्यादि ॥ टीकार्य - (तएण ) इसके बाद (णदे) नद श्रेष्ठी ने (दाहिणिल्ले) दक्षि दिशा सबन्धी ( वणसडे) वनषड मे (एग मह्) एक बडा भोरी (म हाणससाल) रसोईघर - मोजन शाला ( करावे ) बनवाया । (अणेग खभसयसनिवि जाव पडिव, तत्यण बहवे पुरिमा दिन्नभइभत्त वेयणा विपुल असण४ उचक्खडेंति बहूण समण-माहण-अतिहि-किरणवणीपगाण परिभाएमाणा परिवेसेमाणाविहरति यह रसोहघर सैकडों खभो के ऊपर खडा किया गया था। बडा ही रमणीय था । इस में अनेक पुरुष रसोई बनाने का काम करने के लिये नियुक्त किये गये थे । उन्हें 'तरण दे दाहिणिल्ले' इत्यादि टीडार्थ - (तएण ) त्यार पी (नदे) नह शेठे (दाहिणिल्ले) दृक्षिषु हिशाना ( वणसडे ) पनष उभा (एग मह ) मे बहु विशाण ( महाणससाल ) २सोध घर-लान्नराणा-(करावेइ ) मनावडावी ( अणेतय भसयस निषिट्ठ जाब पढि रूप तत्थण हवे पुरिसा दिन्नभइभतवेयणा विपुल असर्ण ४ उक्क्सडे ति बहूण समण - माइण- अतिहि-कित्रण वणिगाण परिपाएमाणा परिवेसेमाणा विहरति ) આ ભેાજનગાળા સેકટા થાભલાઓની હતી તે ખૂમ જ રમણીય હતી તેમા કોઈ તૈયાર કરવા માટે ઘણુા માણુસા નિયુક્ત કરવામા આવ્યા હતા. તેઓને
SR No.009329
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1120
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size34 MB
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