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________________ ७२९ - - अनगारधर्मामृतवपिणो टी० अ० १३ अध्ययनसम्मन्धनिरूपणम् टीका-जम्मू म्वामी पृच्छनि-यदि ख्लु भदन्त ! अमणेन भगवता महा. वीरेण यावत समाप्तेन, मिद्विगतिनामधेय स्थान गतेन, द्वादशस्य ज्ञाताध्ययनस्य 'अयम? ' अपमर्थ. = ससर्गविशेषवशाद् गुणद्विरूपोऽर्थ. 'पण्णत्ते' प्रज्ञप्तः= प्ररूपित, तर्हि तदनन्तरम् त्रयोदशस्य व भदन्त । ज्ञाताऽध्ययनस्य, श्रमणेन भगवता महावीरेण मोडी प्रज्ञप्तः । मुधर्मा म्वामी कथयति-एव खलु हे जम्यू ! तस्मिन् काले तस्मिन् समये राजगृह नाम नगरमासीत् । टीकार्य-(जइण भते) हे भदत यदि (ममणेण भगवया महावीरेण) श्रमण भगवान महावीर ने (जाव सम्पत्तेण पारमस्स णायज्झयणस्स अयमटे पण्णत्ते तेरमस्स ण भते । णायज्य णस्स ममणेण भगवया महावीरेण के अटे पण्गत्ते ) कि जो मिद्धि गति नामक स्थान के भागी पन चुके है बारवें ज्ञाताध्ययन का यह पूर्वोक्त रूप से अर्थ निर्दिष्ट किया है-तो हे मदत उन्ही श्रमण भगवान् महावीर ने उस तेरहवें ज्ञाताध्ययन का क्या माव-अर्थ प्ररूपित किया है ? (एव खलु जत्रू ! तेण कालेण तेण समएण रायगिहे नाम नयरे होत्या, गुणसिलए चेइए, समोसरण, परिसा निग्गया ) इस प्रकार जवू स्वामी को प्रश्न सुनकर श्री सुधर्म स्वामी उन्हें समझा ने के निमित्त कहते हैं कि जबू ! सुनो तुम्हारे प्रश्न का उत्तर इस प्रकार है उस काल और उस समय में राजगृह नाम का नगर था । उस नगर के पहिर्भाग में गुणशिलक नाम का चैत्य था । उस में भगवान् महावीर प्रभु आये। प्रभु के Astथ-( जइण भते 1 ) 3 महन्त । ( समणेण भगाया महावीरेण) શ્રમણ ભગવાન મહાવીરે— (जार सम्पत्तेण पारमस्त णायज्झयणस्म अयमहे पण्णत्ते तेरसमस्स ण भते । णायज्झयणस्स समणेण भगवया महावीरेण के अटे पण्णत्ते) કે જેઓ સિધગતિ મેળવેલા છે–બારમા જ્ઞાતાધ્યયનને આ ઉપર કહ્યા મુજબ અર્થ નિરૂપિત કર્યો છે તમારે હે ભદન્ત ! તેઓ શ્રમણ ભગવાન મહા વીરે આ તેરમા જ્ઞાતા બને છે ભાવ-અર્થ નિરુપિત કર્યો છે ? (एक खलु जन । तेग कारेण तेण समए रायगिहे नाम नयरे होत्या, गुणसि ठए चे.ए, ममोमण परिसा निग्गया) આ પ્રમાણે જ બૂ -નામીને પ્રશ્ન નાભળીને સુવર્મા સ્વામી તેમને સમ જાવવા માટે કહેવા લાગ્યા કે હે જ બૂ! સાભળે, તમારા પ્રશ્નને ઉત્તર આ પ્રમાણે છે કે તે કાળે અને તે સમયે રાજગૃહ નામે નગર હતું તે નગરની
SR No.009329
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1120
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size34 MB
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