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________________ अनगारधर्मामृतवर्षिणीटीका अ. ४. गुप्तेन्द्रियत्वे कच्छपशृगालद्रष्टातः ७३१ परियत्तेति आसारेति संसारेति चालेंति घीति फलेंति खोभेति पहेहि आलंपंति दंतेहि य अक्खोडेंति नो चेव णं संचाएंति, तेसिं कुम्मगाणं सरीरस्स आबाहं वा पबाहं वा वाबाहं वा उप्पाएत्तएछविच्छेयं वा करेत्तए ॥ सू. ७॥ टीका-'तएणं ते पावसियालया' इत्यादि । ततः खलु तो पापशगालको यत्रैव तौ कर्मको तत्रैवोपागच्छतः तदनन्तरं तयोः कच्छपयोः समीपे तौ शुगालौ गतावित्यर्थः। उपागत्य-कच्छपयोः समीपे आगत्य, तौ शृगालो तौ कूर्मको सर्वतः समन्ताद् 'उब्धति' उद्धर्तयतः अधः प्रदेशमुपरि कुरुतः 'परियति' परिवर्तयतः पूर्व यथाऽवस्थितं-तथैव पुनः कुरुतः, उपरिकृतं गात्रमधः कुरुत इत्यर्थः। 'आसारेतिः आसारयत: यस्मिस्थाने तयोरेकैकस्य शरीरं स्थितमासीत् ततो मनागपसारयतः, 'संसारेंति' संसारयत:=पुनः पुनः स्थानान्तरं प्रापयतः। 'चालेति' चालयतः कम्पयतः, 'घटेति' घट्यतः । 'तएणं ते पावसियालया' इत्यादि ।। टीकार्थ--(तएणं) इसके बाद (ते पावसियालया) वे दोनों पापी श्रगाल (जेणेव ते कुम्मगा) जहां वे दोनों-कच्छप थे-(तेणेव उवागच्छंति) वहां पर आये-उवागच्छित्ता ते कुम्मगा सवओ समंता उत्पनेति) आकर के उन्होंने उन कूर्मों को सब प्रकार से अच्छी तरह उर्तित कियाउन्हें नीचे से ऊचा किया--पलटा--(परियति) परिवर्तित कियाजिस स्थितिमें वे पहिले पडे हुए थे उसी स्थिति में उन्हें पुनः कर दिया (आसारैति) उनके स्थान से उन्हें कुछ २ आगे चलाया -(संसाति) दूसरे स्थान पर ले जाकर रख दिया (चालेति) वहां उन्हें हिलाया (घहे ति) अपने दोनों आगे के 'तएण ते पावसियालया' इत्यादि । टी--(तए ण) त्या ६ (ते पाचसियालया) ने पापी श्रास (जेणेव ते कुम्मगा) न्यारे ते यमायो ता (तेणेव उवागच्छति) त्यां गया (उवागच्छित्ता ते कुम्मगा सवओ समता उठवत्तेंति) त्यो मावीन तमामे यमामाने सारी पेठे नीये ५२ ४ा. (परियति) परिवति त ४ा-2 स्थितिमा पद तi ते स्थितिमा शश भूपी दीपां. (आसाति) तो ज्या ५७॥ तप त्यांची था31 PAIIM मसेडया, (संसात्ति) तेमाने भी स्थाने भूटीवीधा. (चाळेति) त्या भूटीन तेभने साव्या, (घटुंति) पोताना भासण मने पोथी तेमनी २५
SR No.009328
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages770
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size48 MB
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