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________________ अनगारधर्मामृतवर्षिणीटीका अ २ धन्स्य मोक्षवर्णनम् बहूनि वर्षाणि श्रामण्यपर्यायं पालयित्वा भक्तं प्रत्याख्याति, प्रत्याख्याय मासिक्या संलेखनया पष्टि भक्तानि अनशनेन छिनत्ति, छित्त्वा कालमासे कालं कृत्वा सौधर्म कल्पे देवत्वेन उपपन्नः। तत्र खल अस्त्येककानां देवानां चत्वारि पल्योपमानि स्थितिः प्रज्ञप्ता, तत्र खलु धन्यस्य देवम्य चत्वारि पल्योपमानि स्थितिः प्रज्ञप्ता। स खलु धन्यो देवस्तस्माद्देवलोकात् आयुः धम्म सोच्चा एवं बयासी) इसके बाद उम धन्यसार्थवाहने धर्म सुनकर इस प्रकार कहा-(सदहामि णं भंते निग्गंथे पावयणे जाव पत्रइए जाव वहूणि वासाणि सामन्नपरियागं पाउणित्ता भत्तं पञ्चक्खाइ) हे भदंत ! म निगन्य प्रवचन को श्रद्धा करता हूँ। यावत् वह प्रवजित हो गया। वहन वर्णी तक उसने श्रामण्य पर्याय का पालन किया-बाद में उसने चतर्विध भक्त को प्रत्याख्यान कर दिया ।-(पच्चक्खित्ता मासियाए संलेहणाए सर्टिभत्ताई अणसणाए छेदेड) प्रत्याख्यान करके १ एक मास की संलेग्वना से उमने ६० भक्तो को अनशन द्वारा छेद दिया-(छेदित्ता काल मोसे कालं फिच्चा सोहम्मे कप्पे देवनाए उववन्ने) छेदकर फिर वह मृत्यु के अवमर आने पर मरा-और मर कर सौधर्म कल्प में देव की पर्याय से उत्पन्न हो गया। (तन्थणं अत्थेगइयाणं देवाणं चत्तारिपलिभोवमाई ठिई पण्णत्ता) वहां कितने क देवों की चार पल्योचमप्रमाणस्थिति कही गई है सो (तत्थणं धण्णस्म देवस्स चत्तारिपालोक्माई ठिइ पण्णता) इसमें धन्यकुमार देवकी वहां चार एवं वयासी त्या२ पछी धम-टेशनानु श्रप शने धन्य सार्थवाडे ह्यसदहामि ण भते निग्गथे पावयणे जाव पवाए जार बहूणि वासाणि सामन्नपरियाग पाउणित्ता भत्तंपञ्चक्खाइ) के महत। निय अवयनमा હું સારી પેઠે શ્રદ્ધા ધરાવું છું. આ રીતે ધન્ય સાર્થવાહ પ્રજિત થઈ ગયા ઘણાં વર્ષો સુધી તેઓએ શ્રમણ્ય પર્યાયનું પાલન કર્યું ત્યાર બાદ તેમણે ચતુર્વિધ मतनु प्रत्याभ्यान यु. (पञ्चक्वित्ता मासियाए संलेहणाए महि भत्ताद अणसणाए छेदेइ) प्रत्याभ्यान ४शन से मडिनानी समनाप तेभ सा मतानु अनशन 43 छन यु. (छेदित्ता कालमासे कालं किच्चा मोहम्मे कप्पे देवत्ताए उवदन्ने) छन यो मा मृत्युनो मत च्यारे माव्यो त्यारे तेसो भ२४ पाभ्या भने भर पाभीन सौधर्मः ४८५मां हवनी पर्यायथी तो जपन्न थया (तत्थ णं अत्थेगइयाणं देवाणं चत्तारि पलिग्रोवमाइ ठिई पण्णता) त्यांटदा हेवानी स्थिति यारपल्यापम प्रभाए। रक्षी छ. (तत्थ णं च धणस्स देवस्म चत्तारिपलिभोमाई ठिई पणत्ता) मा शते धन्यभार हेपनी स्थिति त्या यार
SR No.009328
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages770
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size48 MB
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