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________________ अनगारधर्मामृतवर्षिणीटीका अ. २ धन्यस्य विजयेन सह हडिवन्धनादिकम् ६५७ वधैः यष्टयादिना ताडनरूपैः 'कसप्पहारेडिय' कशाप्रहारैश्च दिवसेऽनेकवार कशाघातरूपैः 'जाब' यावत् एवं लत्तादिपरिघातकरूपैश्च प्रहारैः, तृप्ण या च क्षुधया च 'परन्भवमाणे' पराभवन्ः-परिपीड्यमानो जर्जरितशरोरः सन् कालमासे= मृत्युसमये कालं कृत्वा 'नरएसु' नरके पापार्मिणा यातनास्थाने 'सत्रे प्राकृतत्वाद् बहुवचनम्' 'नेग्यत्ताए' नैरयिकतया नारकत्वेन 'उववन्ने' उपपन्न: उत्पन्नः । स खलु तत्र-नरके नरथिको जातः, कीदृशः ? इत्याह- 'काले' इत्यादि, 'काले' काल: कृष्णवर्णः 'कालोभासे' कालावभास:न्द्रष्टणा काल इ-मृत्युरिव अवभामते, यद्वा काल:-श्यामः अवभासः% दीप्तियस्य स तथा 'जाव' यावत् यावच्छन्देन-गंभीर लोमहरिसे भीमे उत्तासणए परमकण्हे वणण' से तत्थे निच्चं भीए, य परमवमाणे कालमासे काल किच्चा नरएमु नेरइयत्ताए उववन्ने) उन पूर्व प्रदर्शित रज्वादि द्वारा दृढनियत्रण रूप वधों से यष्टयादि द्वारा ताडन रूप बंधों से, दिवस में अनेक बार कृत कशाघातरूप प्रहारों से-- लत्तादि परिघात रूप मडारों से भूख और पियास से परिपीडित होता हुआ--जर्जरित-शरीर होता हुआ काल अबसर काल कर के ओर पार कर्मों के यानमा स्थानरूप नरक में नारकी की पर्याय से उत्पन्न हुआ। (से ण तत्ध नेरइए जाए) वह वहां ऐसा नैरथिक हुआ कि जो (काले कालोभासे जार वेयणं पच्चणुमावमाणे विहरइ) शरीर में कृष्ण वर्ण वाला देखने वालों को मृत्यु जैमा प्रती । होता था--अथवा काली दीप्तिवाला । या यावत् शब्द से इस पाठ का यहां और संग्रह किया गया है। (गंभीरलोमहरिसे, भीमे, उत्तोसणए परमकाहे वण्णेण से तत्थ निच्च भीए, निच्च तत्थे, निच्च तसिए, परभवमाणे कालमासे काल किच्चा नरएमु नेरइयत्ताए उपवन्ने) पडेला વર્ણન કરવામાં આવ્યા મુજબ દેરીઓના સખત બંધને લાકડીઓ વગેરેને માર અને દિવસમાં ઘણીવાર કરવામાં આવેલા કેરડાઓના પ્રહારો, લત્તા વગેરેના પ્રહાર ભૂખ અને તરસથી દુખી થતે શિથિળ શરીરવાળે થઇને આખરે મૃત્યુ પામ્યો અને પાપકર્મોના યાતના સ્થાનરૂપ નરકમાં નારીની પર્યાયમાં જનમ્યો (से णं तत्थ नेरइए जाए) यिनी पय यम ते (काले कामोभासे जाव वेधणं पच्चणुभवमाणे विहरद्र) शरीरे हम अाशवो मने लेनारामा ते मृत्यु प्रयड सागतो तो मही (यावत) शहथी मा पानी सड थयो छ- (गंभीरलोमहरिसे भीगे उत्तासणए परमकण्हे बण्णेणं से
SR No.009328
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages770
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size48 MB
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