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________________ ६३० ज्ञाताधर्म कथासूत्र चारकालाकारागार गृहं तत्रापागच्छान्त, उपागत्य तस्य 'हडिबंधणं' हाडबन्धनं-काष्ठविशेष वन्धनं 'वेडी' इति भाषामसिद्धे हडियन्त्रे बन्धन कुर्वन्ति, कृत्वा भत्तयाणनिरोह' भक्तपाननिरोधम् अशनपान प्रतिषेध कुर्वन्ति कृत्वा 'तिस' त्रिमध्य-प्रातमध्याह्नसायंस्वरूपे कालत्रये कशापहारांश्च यावद् निपातयन्तो निपातयन्तो विहरन्ति । 'तएणं' ततः खलु-इतः स यन्यः मार्थवाही मित्रज्ञातिनिज कम्बजनसम्बन्धिपरिजनेन साई रुदन यावद विलपन देवदत्तम्य दारकस्य शरीरस्य 'सहया इडीसकारसमुद एणं' महता ऋद्धिमत्कारममुदयेन महता विस्तीर्णन ऋदया-वस्त्रादि सामग्द्रा सत्कार:-मृतगरीरसम्मानं तेन, समुदयेन-जनसलेन च 'नीहरण' निर्हरणं शवस्य श्मशानभूमिनयनं करोति, कृत्वा मृतकशरीरदहनक्रियानन्त बनि कागगार (कैग्वाना) जहा था। वहा गये उवागच्छित्ता हडिबंधणं करें ति) वहां जाकर वे उसे हडि यत्र में बांध देते हैं। (करित्ता भत्तपाणनिरीह करे नि करिता तिलझं कसपहारे य जान निवाएमाणा २ विहरति) बाद में उसे ग्वानापाना देना बंध कर देते है। और तीनों संध्या के समय (सुबह दो पहर तथा मांयकाल) उसे कोडे आदि के महारों से जग्ति शरीर कर देते है। (तएणं से धन्ने सत्यवाहे मिननांड नियगसगणसंवधिपरियणेण सद्धि रोयमाणे जाव विलबमाणे देवदि न्नम्म दारगस्त गरीरस्म महया इडिमक्कारसमुदएणं नीहरणं करेट) इसके बाद उम धन्य सार्थवाहने मित्र, ज्ञाति, निनक स्वजन, सम्बन्धी और परिजनों से युक्त होकर रोते हुए यावत् विलाप करते हुए अपने देवदत्त दारक के शरीरकी वढे भारी उत्मव के साथ अर्थी निकाली । -- चारगमाला तेणामे व उवागच्छ ति) तेयो २६ १२५ गया. (उवागछित्ता हडिवंधण करेंति) त्यां न तेयाय योरने यि (EISIनी AS)मा ५ धन त्र्यो करित्ता भन्नपाणनिरोह करेंति करिता तिसझं कसप्पहारे य जाव निवाएमाणा २ विहरंति, त्यार मा तेयो यो२ ने मावा પીવાની બધી વસ્તુઓ આપવાની બંધ કરે છે અને સવાર, બપોર અને સાંજ ત્રણે સ ધ્યાના સમયે કેરડા વગેરેના પ્રહારથી તેના શરીરને શિથિલ અને જર્જરિત ४श नाणे छ (त एणं से धन्ने सत्यवाहे मिणेनाइनियगसयणसंबंधिपरियणेणं सद्धिं गेयमाणे जाव बिलबमाणे देवदिन्नस दारगस्स सरीरस्स महया डड सिक्कारसमुदएणं नीहरणं करेड) त्या२ पछी धन्य सार्थ वा भित्र, जाति, નિજક, સ્વજન, સ બધી અને પરિજનોની સાથે મળીને રડતા રડતા અને કરુણ ક દન કરતા બાળક દેવદત્તના શરીરની બહુ મોટા ઉત્સવ રૂપે મશાનયાત્રા કાઢી શ્મશા
SR No.009328
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages770
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size48 MB
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