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________________ - - - - - अनगागधर्मामृतवर्षिणी टीका अ.२स्त्र. ८ देवदत्तवर्ण नम् દ૨૩ णतया किरङ्ग पुनर्दशेनत या अयमदुम्बरपुष्प वन् श्रवणगाचरत या दुलभः कि पुनदर्शनेन. तस्य नाम श्रवगमपि दुर्लभं वर्तते दर्शनम्य का कथे ति भावः। ततः खलु एकदा मा भद्रा भार्या देवदत्त दारक म्नातं सर्वालङ्कारविभूषित पान्थकस्य हस्ते ददाति यावत् पादपतिनस्तन्मम निवेदयति. तत्-तस्मात् कारणात् इच्छामि खलु हे देवानुप्रियाः देवदत्तस्य दारकस्य सवतः समन्तान्मार्गणगवेषणं कर्नुम् । ततः ग्वलु ते नगरपासणयाए) हे देवानुप्रियो ! सुनो ! भद्रा भार्या की कुक्षि से उत्पन्न हुआ देवदत्त नामक मेरा एक पुत्र है जो विशेष इष्ट यावत उद्बर पुष्प के समान सुनने के लिये भी मुझे दुर्लभ था। उसके देवने को तो बात ही क्या है (नएणं सा भदा देवदिन्नं दारयं हाय सत्राल कारविभूसियं पंथगस्स हत्थे दलाइ) उस देवदत्त दारक को भद्रा भार्याने स्नान करा कर और समम्त अलंकारों से विभूपित कर पांथक के हाथमें दिया। (जाव पायपडिए तं मम निवेदेइ) वह उसे गोद में लेकर क्रीडा के लिये राजमार्ग ले गया साथ मे और भी कई बालक बालिकायें थीं--उसने वहां जाकर उसे एक तरफ एकांत स्थान में रख दिया और स्वयं उन वालक बालिकाओं के साथ खेलने लग गया। थोडा समय बाद जब वह वहां आया तो क्या देवता हैं कि वहां देवदत्त नहीं हैं आकर उसने मेरे पैरों में पडकर मुझसे यह समाचार निवेदित किया है। अतः (इच्छामि णं देवानुपिया ! देवदिन्नदारगस्स सव्वओ समंता मग्गणगवेमण काउ) अतः मैं चाहता हूँ कि हे देवा મારી પત્ની ભદ્રાના ઉદરથી જન્મેલો દેવદત્ત નામે મારે પુત્ર હતું. જે મને બહુ જ ઈષ્ટ હતું તેને જોવાની વાત તો દૂર રહી પણ ઉદુ બરના પુષ્પની જેમ તેનું નામ શ્રવણ पशु असम तु. (तएण सा भदा देवदिन्न दारय हाय सबाल कारविभूसियं पंधगस्स हत्थे दलाइ) हेवहत्तने भद्रा मायर्याय नावीन गवां धरेमाथी सुस०४०४ ज्यो भने पाय/ने सध्या (जाव पायपडिए, त मम निवेदेड) બાળકને તે કેડમાં લઈને રાજમાર્ગ ઉપર રમાડવા લઈ ગયે. તેની સાથે ઘણાં બાળકો અને બાળાઓ હતી. ત્યાં જઈને તેણે બાળક દેવદત્તને એક તરફ બેસાડી દીધો. અને જાતે તે બીજા બાળકની સાથે રમતમાં પડી ગયા. થોડે વખત પછી જ્યારે તે ત્યાં આવ્યું ત્યારે બાળક દેવદત્ત તેને જડે નહિ. મારી પાસે આવીને तो मा uी बात ४री छ. (इच्छामि ण देवाणुप्पिया! देवदिन्न दारगस्स सचओ समता मग्गणगवेसण काउ) याड छ : मा0४ व.
SR No.009328
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages770
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size48 MB
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