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________________ ५९० शातधर्मकथासूत्रे एणं पमजइ पमजित्ता उद्गधाराए अभुक्खेइ, अभुक्खित्ता पम्हलसुकुमालाए गंधकासाइयाए गायाइं लूहेइ, लूहित्ता महरिहे वत्थारहणं च मल्टाम्हणं च गंधारहणंच चुन्नारुहणं च करेइ, करित्ता जाव धूवं डहइ, डहित्ता जाणुपायवडिया पंजलिउडा एवं वयासी. जइणं अहं दारग वा दारिगं वा पयायामि तो णं अहं आयं च जाव अणुबडे मि तिकट उवाइयं करेइ, करिता जेणेव पोखरिणी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता विउलं असणंट आसाएमाणी जाव विह रइ, जिमिया जाव सुईभूया जेणेव सए गिहे तेणेव उवागया, अदु. जर च णं सदा सत्थवाही चाउदसटमुदिट्रपुन्नमासिणीसु विउलं असणंट उवक्रवडेइ, उवक्खडिता वहवे नांगा य जाव वेसमणा य उवायसाणी जाव एवं च णं विहरइ ॥सू० ५॥ टीका-'तएणं नीसे' डन्यादि । ततवलु तस्याः भद्राया भार्याया अन्यदा कदाचित 'पुवातावरत्तालममयंसि' पूर्वरात्रापररात्रकालसमये-राः पश्चिमे मागे 'कुइंधनागरियं' कुटुम्ब नागरिकां-कुटुम्बसम्बन्धिचिन्तया निद्राक्षयरूपा जागरणम् 'नागरमाणीए' जाग्रन्या:-कुर्वत्याः अयमेत दूपः 'अज्झथिए' 'नगणं तीसे भाग भारियाए' इत्यादि । : टीराथ-(नएण) इसके बाद (तीसे भद्दाए भारियाए) उम भद्रा भार्या सा (अन्नया कया) किसी एक समय (पुम्वरत्तावरत्तकाल समयंसि) रात्रि के माग के बाद पश्चाद्धाग में (कुईवजागरियं जागरमाणोण) कुटुम्ब की निन्ता में निद्रा नही आने के कारण जगती हुई स्थिति में (अयमेया 'तपणं तास भटाए भाग्गिा उत्यादि । 24--(नगण) त्या२ one (तीस भदाण भारियाए) मा सायाने (अन्नया स्या) पत (पुन्चरत्तावरत्तकालसमयंमि बिना न ५. ५वा (कुट्रय जागरि जागामाणीप) सनी विना- ri न मानतावश्यामा (अय. मयाम्चे अझविधा नाच समुपजिन्या) L AT BALA यातू . ५ : (i) (धन्नण मत्थवाहेण सदि।
SR No.009328
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages770
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size48 MB
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