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________________ ५५६ - ज्ञाताधर्मकथाम नुप्रियाणामन्तवासी मेघनामा अनगारः स खलु हे भदन्त ! मेघोऽनगारः कालमासे कालं कृत्वा कुत्रगतः ? कुत्र उत्पन्नः ?, 'गोयमाई' हे गौतम ! इति संबोध्य गौतमादीन् श्रमणान् निर्ग्रन्थान् उद्दिश्य श्रमणो भगवान महावीरः भगवन्तं गौतम एवमवदत्-एवं खलु गौतम ! ममाऽन्तेवासी मेघनामा अनगारः प्रकृतिभद्रको यावद विनीतः, स खलु तथारूपाणां स्थविराणामन्तिके सामायिकादीनि एकादगागानि अधीते अधीत्य द्वादशभिक्षुमतिमाः भंते त्ति भगवं गोयमे इत्यादि टीकार्थ- (भते) हे भदंत ! इस प्रकार कहकर (भगवं गोयमे) भगवान गौतमने (समणं भगवं महावीरं वदइ, नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी) श्रमण भगवान महावीर को वंदना की नमस्कार किया। वंदना नमस्कार करके फिर उन्होंने इस प्रकार कहा--( एवं खलु देवाणुप्पियाणं अंते वासी मेहे णाम अणगारे, सेणं भंते ! मेहे अणमारे कालमासे कालंकिच्चा कहिं गए कहिं उपचन्ने ? ) देवानुप्रिय आपके अंतेवासी मेघ नामके अनगार थे वे मेघ अनगार कालमासमें काल करके कहां गये हैं कहां उत्पन्न हुए हैं (गोयमाइ समणे भगवं महावीरे भगवं गोयम एवं क्यासी) हे गौतम! इस प्रकार से संबोधित करते हुए श्रमण भगवान महावीरने उन गौतम से ऐसा कहा-(एव खलु गोयमा! मम अंतेवासी मेहेणामं अणगारे पगइभदए जाव विणीए से णं तहाख्वाणं थेराणं अतिए सामाइयमाडयाइ एक्कारसगाई अहिजइ) सुनो मै कहता हूँ--मेरे (भतेत्ति भगवं गोयमे इत्यादि । टीकार्थ-(भंते) महत ! मेवी शत समाधान (भगवं गोयमे) लगवान गौतमे (समणं भगव महादीरं चंदइ नमसइ, वंदित्ता, नमंसित्ता एवं वयासी) કામ ભગવાન મહાવીરને વંદન અને નમસ્કાર કર્યા. વંદન અને નમસ્કાર કરીને तेत मा प्रभारे ४-(एवं खलु देवाणुप्पियाण यंतेवासी मेहे णामं अणगारे मेणं मत ! मेहे अणगारे कालमासे काल फिच्चा कहिं गए कटिं उनान्ने ?) हेपानुप्रिय । भे नामना मनगर तमा। मतवासी ता. ते मनગાર મેઘકુમાર કાળ માસમાં કાળવશ થઈને કયાં ગયા છે? કયાં ઉત્પન્ન થયા છે? (गोयमाइ गमण भगवं महावीरे भगवं गोयम एवं वयासी) र गौतमा । क्षेनी ते साधीन प्रभाव पान मडावी३ गौतमने ४४~-(एवं ग्वल गोयमा मम अंतेवामी मेहे पाम अणगारे पगइभाए जाय पिणीए सेण तहा. म्याण थेग अंविए मामाइयमाङयाई एक्कारमभंगाइ अहिज्जा)
SR No.009328
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages770
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size48 MB
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