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________________ - ૧૮૮ शाताधर्मकथासूत्रे स्त्याभिमुखः संपर्यङ्कनिपण: पद्मासनेनोपविष्टः करतलपरिगृहीतं शिर आवतं मस्तकेऽजलिं कृत्वा एवमवदत् 'नमोऽत्युगं अरहंताणं भगवताणं जाव संपनाणं नमोऽत्युणं समणरस भगवओ महावीरस्स जाव संपाविउकामस्स' मम धम्मायरियम्स” नमोऽस्तु खलु अद्भयो भगवद्भयः यावद् संप्राप्तभ्यः नमोस्तु खलु अमणाय भगवते महावीराय यावत् संप्रासुकामाय मम धर्माचार्याय । वंढे खलुभगवन्त तत्रगतम्-तत्र गुणशिलके चैत्ये, गत स्थितम् इह गतः इह-पत्र-पृथिवीशिलापटकेऽहंगतः स्थितोऽस्मि,पश्यतु मां भगवान् तत्र उच्चारपामवणभूमि पडिलेडइ, पडिलेहिता दम्भ संथरगं सयरइ संथरिता दम्भ संथारगं दुलहइ) प्रतिलेखना करके फिर उन्होंने उच्चार और प्रसवण की भूमि की प्रतिळेग्वना की। इसकी। प्रतिलेखना करके फिर उन्होंने उस पर दर्भ के सथारे को विछाया। विछाकर फिर वे उस पर बैठे और (दुरुहिता) बैठकर (पुरत्याभिमुहे संपलियंकनिसन्ने करयलपरिग्गहिय सिरसावत्त मत्थए अंजलि य एवं वयासी) पूर्वदिशा की तरफ मुख करके पद्मासन से बैठ गये और दोनो हाथों को जोड कर उसे मस्तक पर रखकर इस प्रकार बोले(नमोत्थुणं अरिहंताणं भगवताणं, णमोत्थुणं समणरस भगवओ महावीररस जाव संपाविउकामम्स मम धम्मायरियस्स दामि) अरहंत भगवन्तों को नमः स्कार हो मेरे धर्माचार्य श्रमण भगवान् महावीर को नमस्कार हो । इत्यादि पाठ को बोलकर (चंदामिणं भगवतं तत्थगयं इहगए पासउ मे भगवं तत्थ्गए इहगयंत्ति कटु वंदड नमसड) फिर उन्होंने ऐसा कहा-गुणशिलक चैत्य में विराजमान उन भगवान् महावीर की में इस पृथिवी शिलापटक पर रहा हित्ता दमसंधारगं संथरइ संथरित्ता दमसथारगं दुरुहइ) प्रतिवेगना કરીને તેમણે ઉચ્ચાર અને પ્રચવણભૂમિની પ્રતિલેખના કરી ત્યારપછી તેમણે તેને ६५२ दल मया पायी पायरीन तो तेना 6५२ सी गया मन, (दुरुहिता) सीने (पुरन्याभिमुहे संपलियंकनिसन्ने करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कई एच क्यामी, पहिशा त२५ । शन पासनमा मेसी गया गाने ने दाय नेने तमने गन्तः ५२ भृतां २मा प्रभारी माध्या-(नमोत्युण अरिहं. नाणं भगवंताणं गमोत्यूर्ण समणम्स भगवयो महावीरस्म जाव संपाविउ कामस्स मम पम्मायरियम्म वंदामि) लगवान भरतने नमः२, भास यायाय श्रम पान महावीरने नपा २ाम मालीन (चंदामिण भगवंत तत्यगय इहगए पासड में भगवं नत्यगए हनयंत्ति कटु दह नमंसद) तभव 'शुशुशिता त्या વિરાજમાન તે ભગવાન મહાવીરને હું આ પૃથ્વી શીલાપક ઉપર સ્થિત રહેલા વંદન કરું છું. ત્યાં વિજેતા ભગવાન મહાવીર સ્વામી અહીં બેઠેલા મને જુએ આમ કહીને
SR No.009328
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages770
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size48 MB
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