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________________ अनगारधर्मामृतवर्षिणीटीका अ१२ ३८ मेघकुमारदीक्षोत्सवनिरूपणम् ४४१ या उत्थाय-निद्रादि प्रमादत्यागपूर्वकम् उत्थानशक्तथा उत्थाय प्राणि द्वित्रि चतुरिन्द्रियलक्षणेषु 'यूएहि' भुतेषु बनस्पतिघु 'जी वेहि पंचेन्द्रिय स्वरूपेषु 'सत्तेमु' पृथ्वव्यप् तेजोवायुबु आपत्वात तृतीया 'संयमेण' संयमेन' मनोवाझाय विशुध्या सर्वधा विराधनोपरमेण 'संजमितव्य' सयमितव्यम्. एव रक्षण व्या. पारेण प्रवर्तितव्य 'असि च णं अष्टे अम्मिश्च खल्वर्थे मोक्षमाप्तिलक्षणे णो यमात्यनं' नो प्रदितव्यम्-प्रसादो न कत्तव्यः सोत्साहं सततमुधमः कर्तव्य इत्यर्थः। ततः खलु स मेघकुमारः श्रमणम्य भगतो महावीरस्यान्ति के समीपे इममेतदूप शर्मिक श्रुतलक्षणं 'उबएसं' उपदेगं णिसम्म' निशम्य हृद्य-धार्य सम्म पडिवजह' सम्यक् प्रतिवनति-म्बीकरोति । 'तमाणाए' तमाजया का ही साधु को प्रयोग करना चाहिये । इस तरह निद्रादिप्रमादों के परित्याग पूर्वक उत्थानशक्ति से उठे कर हिइन्द्रिय, त्रिइन्द्रिय और चतुरि न्द्रिय प्राणियों में वनस्पतिरूप एकेन्द्रिय भूतों में पंचेन्द्रियरूप जीवों में, और पृथियो. अप, तेज, एवं वायुरुपसत्वों में मन, वचन और काय की विशुद्ध से सर्वथा विराधना से उपरमित हो कर साधु को प्रवृत्ति करना चाहिये। (अम्सि च णं अद्वे णो पमाएयत्वं तएणं से मेहे कुमारे ममणम्म भगवओ महावीस्स अंतिए इसं एयाख्व धम्मिय उवएस णिसम्म सरम पडिवज्जइ) मोक्ष माप्तिरूप इस अथ में माधु को कमी प्रमाद नहीं करना चाहिये । किन्तु सोत्साह सतन उद्यम ही करते रहना चाहिये । इस के बाद उन मेघकुमार ने श्रमण भगवान्-महावीर के मुग्वारविन्द से इस प्रकार का यह धार्मिक उपदेवा मुनकर-अर्थात् श्रुतचारित्ररूपधर्म का व्याख्यान श्रवण कर और उसे अच्छी तरह से हृदय में अवधारित આ પ્ર. ણે નિદ્રા વગેરે પ્રમાદને ત્યજીને ઉત્થાન શક્તિ વડે ઊભા થઈને બે ઈન્દ્રિ ત્રણ ઈન્દ્રિ અને ચાર ઇન્દ્રિયવાળા, પ્રાણીઓમાં વનસ્પતિ જેવા એક ઈન્દ્રિયવાળા भूतोमा पथेन्द्रिय ३५ वोमा भने पृथ्वी अ५, (पाणी) ते. मने वायु ३५ સ, મા મન, વચન અને કાયાની વિશુદ્ધિથી, સર્વથા વિ ધનાથી ઉપરમિત થઈને साधुम्मे प्रवृत्ति ४२वी नये (अम्मि च णं अट्टे जो पमाएयच, तएणं से सेहेकुमारे समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए इमं एयारुवं धम्मियं उवएस णिसम्म सम्म पडिवजइ ) भास भेजवानी मातम साधुने अध પણ દિવસ પ્રમાદ (આળસ) નહિ કરવી જોઈએ, પણ સતત ઉત્સાહ રાખીને ઉદ્યમ કરતા જ રહેવું જોઈએ ત્યાર બાદ મેઘકુમારે શ્રમણ ભગવાન મહાવીર મુખારવિંદથી આ પ્રમાણે ધાર્મિક ઉપદેશ સાભળીને એટલે કે મૃતચારિત્ર રૂપ ધર્મ દેશના સાભળીને અને તે દેશના સારી પેઠે હદયમા અવધારિત કરીને સ્વીકારી ૫૬
SR No.009328
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages770
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size48 MB
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