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________________ अनगारधर्मामृतवर्षिणीटीका अ१ २ ३३ मेघकुमारदीक्षोत्सवनिरूपणम् ३९१ शस्फटि सदृशनिमंझे हंसलमग गाटकं "नियंसेंति' निवामयनः 'बम आच्छा. दने णिच् परिधारयतः परिवारण कारयत इत्यर्थः 'नियमित्ता' निवास्य हारं 'पिणद्धति' पिनाहयतः पारधापयतः पिनाह्य अर्धहार पिनाहयतः परिधापयतः, हारोऽष्टादशमरिकः, अर्धहारो नवमरिकः, पिनाह्य एकावलीम् एकमरिकहारं, मुक्तावली. कनकावलीं स्वर्णमाला रत्नावली रत्नमाला, 'पालंब' प्रालम्ब कण्ठाभरणं 'पायपल' पादप्रलम्बः कण्ठादारभ्य चरणपर्यन्तं लम्बमानोऽलंकारवाला अति सुन्दर सुवर्ण के समान कोमल स्पर्शवाला अश्व की लार के समान मृद गुणोपेत, चादी और सोने के तारों से जिसकी कोर बनाइ गई है तथा आकाश और म्फटिक के समान जो अति निर्मल है तथा हंस के चिह्नों से जो विराजित है ऐमा अधोवस्त्र उसे पहिराया । (नियसित्ता हार पिणद्धति, पिणद्धित्ता अद्धहार पिणद्धति, पिणद्धित्ता एगावलि मुत्तावलि कणगावलिं रयण बलिं पालंच पायपलचं कडगाइ तुंडियाई केऊगई अगयाइ सदमुत्तायाणं तयं कडिसुत्तय छुडलाई चूडामणि, रयणुकड मउउ पिणद्वंति) पहिराने के बाद फिर उन्होंने उसे हार पहिराया, अहार पहिरावा, एगावली, मुक्तावली, कनकावली, रत्नावली प्रालय पाद प्रालंच कटक, त्रुटित, केयूर, अंगद, दशमुद्रिकाएँ, कटिमूत्र, कुडल, चूडामणि रत्नजटित मुकुट, ये सब आभूषण और पहिराये। १८ लरें जिसमें होती हैं वह हार, नवलरें जिसमें होती हैं वह अधहार, एक ही लर जिसमें होती है वह एकावली है। मालंब कण्ठाभरण का नाम है। તારે વડે બનાવવામાં આવી છે તેવું આકાશ, અને સ્ફટિકના જેવું અતીવ નિર્મળ तमा सना व्यहोथी शामतु मे मधीवर भेषभारने ५डेराव्यु. (नियंसिता हारं पिणद्धति, पिणद्वित्ता अद्धहारं पिणद्धंति, पिणद्वित्ता एगावली मुत्ताबलिं कणगावलि रयणापलिं पालब, पायपलंब, कडगाई तुंडियाई के ऊराह अंगयाई दसमुद्दियोणं तयं कडिसुत्तयं कुंडलाई, चूडामणि रयणुक्कडं मउडं पिणद्धंति ) पत्र पडेश-या पछी तेमणे मेघमारने २ यडेराव्यो, 44હાર પહેરા એકાવલી, મુકતાવલી, કનકાવલી, રત્નાવલી, પ્રાલંબવાદ, પ્રાલંબકટક, त्रुटित, यू, मह, श वीटयो, होश, ७, यूडामणि, २त्नात मुट આ બધાં ઘરેણુઓ પહેરાવ્યાં અઢાર સેરે જેમાં હોય છે, તે હાર, નવ સેરે જેમાં હોય છે, તે અઈહાર, ફક્ત એક જ સેર જેમાં હોય છે તે એકાવલી કહેવાય છે. કઠાભરણનું નામ પ્રાલંબ છે કઠથી માંડીને પગ સુધી લટકતો રહે છે
SR No.009328
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages770
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size48 MB
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