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________________ ઉપર ज्ञाताधर्म कथासूत्रे यो राजकुलेभ्यः 'आणिमलियाओ' आनीताः समानीताः, 'तं' तत् तस्माद् भुङ्क्षय खलु हे जात ! 'एयाहि सद्वि' एताभिः सार्धं विपुलान् मानुष्यकान् कामभोगान्, ततः पश्चात् भुक्तभोगः श्रमणस्य भगवतो महावीरस्य यावत् प्रवजिष्यसि, ततः खलु स मेत्रकुमारो मातापितरामेवमवदत् - तथैव खलु हे माता पितरौ । यत् खलु यूयं मामेवंवद - इमास्ते=तव हे जात ! सदृइयो यावत् लायक लावण्य, रूप यौवन एवं सद्गुणों से जो युक्त हैं उनके साथ तुम पहिले मनुष्य भव संबंधी विपुल काम भोगों को भोगो ( तओ पच्छा सुभोगे समणस्स भगवओ महावीरस्स जान पत्रइस्ससि) पश्चात् जब तुम सुक्तभोगी बन चुको तव भ्रमण भगवान महावीर के पास मुडित होकर इस आगार अवस्था का परित्याग करते हुए मुनि दीक्षा धारण कर लेना । (aएणं से सेहेकुमारे अम्मापियरं एवं क्यासी) मातापिताकी ऐसी बात सुनकर मेघकुमार ने उनसे ऐसा कहा (तदेव णं अम्मयाओ) हे मातापिताओ ! बात तो यह ठीक है (जणं तुभे ममं एवं वदह ) जो आप मुझ से कह रहे हैं कि (हमाओ ते जाया । सरिसियाओ जान समणस्य पव्वइस्ससि) हे पुत्र ! ये स्त्रियां जो राजकुलों से विवाह कर लाई गई हैं और जो तुम्हारे अनुरूपशरीरादिवाली हैं उनके साथ पर तुम मनुष्यभत्र सम्बन्धी विपुल काम भागों को भोगों । पश्चात् सुक्तभोगी हो कर तुम श्रमण भगवान् महावीर के पास केशोंका लुंचन कर के इस गृहस्थ अवस्था को छोडकर अनगार अवस्था धारण कर लेना રૂપ, યોવન અને જે સાથી સ'પન્ન છે તેમની સાથે પહેલા તમે મનુષ્યભવ साधी गधा अभलोगोने लोगो (तओ पच्छा भुत्तभोगे समणस्स भगEat महावीरम्स जाव पत्रससि) त्यारणाह न्यारे तभे संसारना मघा ભાગ ભાગવીલે ત્યારે ભગવાન મહાવીરની પાસે સુડિત થઇને આગાર અવસ્થા त्यने भुनि हीआ सेन्ने (नएणं से मेहेकुमारे अम्मापियरं एवं वयासी ) भातापितानी या शेते वात सलगीने भेघकुमारे तेभने उ ( तहेव णं अम्मयाओ ) हे भातापिता । वात तो भारी है, ( जण्णं तुभे ममं एवं बदह ) थे तभेदही रहा है। - ( इमाओ ते जाया ! मरिसियाओ जाव समण C पहससि ) " हे पुत्र ! 241 श्रीगो-हे लेगो सञ्नविधिथी शन्नपुणोभाथी અહીં લાવવામા આવી છે, જેએ શરીર, રૂપ વગેરેથી તમારા લાયક છે–ની સાથે પહેલાં તમે મનુષ્યભવના અધા કામભોગે ભાગવે, ત્યારબાદ ભુતભાગી થઇને તમે ભગવાન મહાવીરની પાસે કલુચન કરીને ગૃહસ્થ મટીને અનગાર અવસ્થા ધારણ
SR No.009328
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages770
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size48 MB
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