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________________ अनगारधर्मामृतवर्पिणी टीका. अ१ २६ मेघकुमारपालनादिवर्णनम् २७१ ममानयतीत्यर्थः । ततः खलु मेघस्य कुमारस्य मातापितरौ नं कलाचार्य मधुरैवेचनविपुलेन वस्त्रगन्धमाल्यालंकारेण सत्कुरुतः, संमानयतः, सत्कृत्य सम्मान्य विपुलं जीवियारिहं' जीविताई यावज्जीवनयोग्य प्रीतिदानं दत्तः, दत्वा प्रति विसर्जयतः म. ॥२१॥ मूल-तएणं से मेहे कुमारे बावत्तरिकलापंडिए णवंगसुत्तपडिवोहिए अटारविहिप्पगारदेसीभासाविसारए गीइरइगंधव्वनहकुसले हयजोही गयजोही रहजोही बाहुजोही बाहुप्पमद्दों अलं भोगसमत्थे साहसिए वियालचारी जाए यावि होत्था, तएणं तस्स मेहकुमारस्स अम्मापियरो मेहं कुमारं वावत्तरिकलापंडियं जाव वियालचारिं जायं पासंति पोसित्ता अट्टपासायडिसए कारेंति, अब्भूग्गयमूसियपहसिय विव मणिकणगरयणभत्तिचिने वाउद्भूय विजय वेजयंतिपडागच्छत्ताइच्छत्तकलिए तुंगे गगणतलमभिलंघमाणसिहरे जालंतररयणपंजरुम्मिलियव्वमणिकणगथूभियाए वियलियसयपत्तपुंडरीए तिलयरयणद्धयचंदच्चिए नानामणिमयदामालंकिए अंतोबहिं च भेषकुमार को लाकर उसके मातापिता को सौंप दिया। (नएणं मेहस्स अम्मा पियरो तं कलायरियं) इसके बाद से पकुमार के मानापिनाने उस कलाचार्य का (महरेहिं वयणे) मिष्ट वचनों से और (विउलेणं वत्यगंध मल्ला लंकारेणं) विपुल वस्त्र गंध माला, अलंकार से (सक्कारेंति सम्माणेति) सत्कार किया सन्मान किया (सकारिता सम्माणित्ता विउलं जीवियारिहं पीडदाणं दलयंति) सत्कार सन्मान कर के विपुल प्रोतिदान जीवन पर्यंत निर्वाह होसके उतना उन्हें दिया । (दलयित्ता पडि विसज्जति) देकर फिर विदा करदिया। मुत्र २१ (तएण मेहस्स कुमारस्स अम्मापियरा तं कलायरिय) त्या२ मा भेनशुभारना मातापितामे.ते सायायना (महुरेहि वयणेडिं) भी चयन द्वारा मने (विउलेणं वत्थगंधमल्लालंकारेणं) ४४ प्रमाणुमा १सयो, ध भारी मने म । द्वारा (सक्कारेंति सम्माणति) सलार या सने सन्मान यु (सक्कारिता सम्माणित्ता विउलं जीवियारिह पीइदाणं दलयंति) सा२ मने સન્માન આપીને આજીવન સુધીનું વિપુલ પ્રમાણમાં પ્રીતિદાન આપ્યું છે - यित्तो पडिविसज्जति) मापाने तेभने विहाय ४ा. ॥ सूत्र २१ ॥ ૩૫
SR No.009328
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages770
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size48 MB
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