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ज्ञाताधर्मकथा
नम्३३, 'सुन्नागं' सुवर्णपाक-सुवर्णरसायन विज्ञानम् ६४ 'सुत्तखेडं' सूत्रखे ं=सूत्र क्रीडाविशेवम्६५, 'वहखेड' वृत्त खेलं = वृत्ताकारभ्रमणेन क्रीडाविशेषम्, 'बट्टखेड़' इत्यत्र समवायाङ्गोक्तस्य चम्मखेडे 'इत्यस्य समावेश: - 'चर्मदा' इति प्रतिप्रसिद्धम् ६६, 'नालियाखेडं नालिका खेलम् = इष्टसिद्धयाभावे विपरीतपाशकपातनम् ६७, पत्तच्छेज्जं' पत्रच्छेद्यम् = अष्टोत्तरशतपत्राणां शतपत्राणां मध्ये विवक्षित पत्रच्छेदने हस्तलाघवम्६८, 'कडच्छेजं' 'कडच्छेद्य= कलाविशेषः, ६९, 'सजीवं' सजीव सजीवकरणं मृतमनुष्यम्य जीवितवद्दशानिर्माणम्, मृत सुवर्णादि धातूनां पूर्वरूपसम्पादनं वा ७०, 'निज्जीवं' निर्जीवं पारदादि धातूनां मारणम् ७१, 'सणरूपमिति' शकुनरुतम् = शुभाशुभम्रन्त्रक पक्षिशब्दज्ञानम् ७२ ||० २०॥ का ग्रहण किया गया है। धनुर्वेद-धनुष चलाने की विधि की सीग्वना६२, हिरण्यपक चांदी से रसायन बनाने को विधि सीखना६३, सुवर्णपाक सुवर्ण के पाक बनाने की विधि सीखना ६४, सूत्र खेल - डोरो से खेल करना सीखना ३५, वृत्त खेट गोलाकार भ्रमण करते हुए खेल करना६६, नालिका खेलईन्द्र सिद्धि के अनाव से विपरीनरूप से प्राशों का डालना ६७, पत्रच्छेद१०८ पत्तों के बीच में किसी एक बताये हुए पत्ते को छेद देना ६८, टच्छेध ६०. जाब- मरे हुए मनुष्य को जीवित मनुष्य के समान बतलाने की विधि में निपुण होना ७० अथवा मारी गई सुवर्ण आदि धातुओ को उनके पूर्वरूप में दिखला देना. निर्जीव पारद आदि धातुओं को मारने की विधि जानना ७१, कुनरुत-पक्षियों के शब्दों से शुभ और अशुभ का ज्ञान करना०२ । इनमें अन्नविधिनामकी १६ ची कला 'मिथ' इसका समावेश किया गया है इस तरह
બનાવવાની વિધિ શીખવી (૬૩), સુવર્ણ ૫-સાનાના પાક બનાવવાની કળા શીખવી (१४) सुत्र पेस होगओ द्वारारभता श्रीणवु (हय) वृत्त ખેલ-ગેાળાકાર ભ્રમણ કરતા નમવું (૬), નાલિકા ખેલ-ઇષ્ટ સિદ્ધિના અભવમા વિપરીત રૂપથી પાશા ईश्वर (१७) पत्र- छे गेसो भाउ (१०८) पत्तागोनी वरचे श्रेये पत्ताने ठेवु (१८) ४२ છેદ્ય–(૯) સચ્છન~મરે માણસને જીવતા માણસની જેમ બતાવવાની કલામાં નિપુણ થવું ( ७० ) अथग भारी गई, भुत्रार्थ वगेरे धातुगोने तेमना पूर्वश्यमा मताववु, અર્થાત્ સુવર્ણ ભસ્મને ફરી સુવર્ણીનું રૂપ આપવુ. નિર્જીવ-પાદ વગેરે ધાતુઓને મારવાની વિધિ વ્હણવી (૭૧), ટુનરુત-પક્ષીઓના અવાજ ઉપરથી શુભાશુભ call ( ७२ )
આ કળામાં અન્નવિધિ' નામની ૧૬ મી કળામાં સમવાયાંગ કથિત