SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 191
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनगारधर्मामृतवर्षिणी टीका. स.१३ अकालमेघदोहदनिरूपणम् १७७ टीका-तएणं सा इत्यादि। ततः दोहदसमुत्पत्त्यनन्तरम्, सा धारिणी राज्ञी 'तमि' तस्मिन् अकालमेघवर्षणरूपे, 'दोडलंसि' दोहदे 'अविणिजमाणंसि' अविनीयमाने-अपूर्यमाणे, सा कीदृशी जातेत्याह-'असंपन्नदोहला' असंपन्न दोहदा-अकालमेघवर्षणाभावात् असंप्राप्तदोहदा, 'असंपुन्नदोहला' असंपूर्ण दोहदा-मेघवर्पणाभावेन दोहदस्याऽसंपूर्णत्वात्, 'असंमाणियदोहला' असंमानितदोहदा अकालमेघवर्षणजनितानन्दसद्भावाभावात् 'सुक्का' शुष्का-मनसः संतापेन शुष्कशोणितत्वात्, 'भुक्खा' बुभुक्षावतीवदोहदस्या सम्पूर्णत्वेनात ध्यानतया क्षुधाकान्तावदुर्बला, अत एव 'णिम्भसा' निमासा-शुष्कमांसा 'ओलुग्गा' अवरुग्णा=चिन्तारोगग्रसितत्वान्जीर्णा 'ओलुग्गसरीरा' अवरुग्णशरीरा-चिन्ता तिशयान् जीर्णशरीरा, 'पम्मइलदुव्बला' प्रमलिनदुर्वला प्रकर्षेण मलिना कान्ति. तएणं सा धारिणी देवी इत्यादि ॥ टीकार्थ-(तएणं) दोहला उत्पन्न होने के बाद (सा धारिणी देवी) वह धारिणी देवो जब (तंसि दोहलंसि) अकाल में मेघ वर्षणरूप वह अपना दोहला (अविणिज्जमाणंसि) पूर्ण नहीं हुआ तब (असंपन्नदोहला) असमय में मेघवर्षण के अभाव से दोहद की पूर्ति प्राप्त नहीं कर सकने के कारण (असंपन्नदोहला) दोहद की असंपूर्णता होने के कारण, (असंमाणिय दोहदा) दोहद समानित (पूर्ण) नहीं होने के कारण, (सुक्का) मन में अतिशय संतापवाली हुई और इस कारण शोणित शुष्क हो जाने से वह मक गई (भुक्खा) बुभुक्षित व्यक्ति की तरह वह दुर्बल हो गई (णिम्मंसा) मांस भी उसका शुष्क जैसा हो गया। (ओलुग्गा) चिन्ता से रोग से ग्रसित होने के कारण जीर्ण जैसी बन गई । (ओलुग्गसरीरा) चिन्ता की अतिशयता से वह जीण शरीर हो गई (पमइल दुव्बला) कान्तिरहित होकर तएणं सा धारिणीदेवी इत्यादि "मुत्र टीमथ-(त एणं) हा उत्पन्न थया पछी (सा धारिणीदेवी)न्यारे धारिणीहवीनु (तं सि दोहलंसि) असमये मेघवर्ष होड (अविणिजमाणंसि) पूनहि युत्यारे (असंपन्नदोहला) मसभये भेषना मला पाता होनी पूति नहि थवाथी (अमपुन्नदोहला) होड सन्मानित (पू) न पाने वाघ, (सुक्का) ते मनमा भूम हु.भी थमने शरीरमाथी योडी सूवाथी मनी 15, (मुक्का) भूमी व्यतिनी तेज थ 15, (हिम्मंसा) तेनु मांस पर सुन आयु (ओलुग्गा) यिता भने शपथी पी-मटी ते र्ष देवी पनी आ5 (ोलुम्गसरीरा) सतिशय थिन्तान माथी [ शरीरवाणी थ६ ७. (पमइलदुबला) निस्तर
SR No.009328
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages770
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size48 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy