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________________ १९८ ज्ञाताधर्म कथासूत्रे गेहिं अब्भंगिए समाणे तेलच मंसि पडिपुण्णपाणिपाय सुकुमाल कोमल लेहिं पुरिसेहि छेएहि दवेहि पहिं कुसले हि मेहावीहि निउणेनिउणसिप्पोवगतेहिं जियपरिस्समेहिं अभंगणपरिमद्दव्वलणकरणगुणनिम्माएहिं अट्टिसुहाए मंससुहाए तयासुहाए रोमसुहाए उविहार संवाहणार संवाहिए समाणे अवगयपरिस्समे नरिंदे अट्ट - सालाओ पडिक्खिमइ पडिनिवखमित्ता जेणेव मज्जणघरे तेणेव - उवागच्छइ उवागच्छिन्त मज्जणधरं अणुपविसइ अणुपविसित्ता समुत्तजालाभिरामे विचितमणिरयणको हिमतले रसणिजे पहाणमंडवं सि पाणामणिरयणभत्तिचित्तंसि पहाणपीठंसि सुहनिसन्ने सुहोदर हिं पुप्फोद एहि गंधोद एहिं सुद्धोद एहिं य पुणो पुणो कल्लाणगपवरमज्जणबिहीए मजिए तत्थ कोउयसएहि बहुविहेहिं कल्लाणगपवरमजणावसाणे पहलसुकुमालगंधकासाईयलूहियंगे अहत सुमहग्यदूसरयण सुसंबुए सरससुरभिगोसीस चंदणाणुलित्तमते सुइमालावन्नग/वेलेवणे आविखमणिसुवन्ने कप्पियहारड हारतिसरय पालंव पलंबमाणकडिसुतसुक्य सोहे पिणद्धगेवजंगुले जगल लियकयाभरणे णाणार्माणकडगतुडियथं भियसुए अहियरुवसस्सिरीए कुंडलु जोइयाणणे मउड दिचसिरए हारोत्थवसुकयरइयवच्छे पालंवपलंबमाण सुकयपडउत्तरे जे सुहिया पिंगलंगुलीए णाणासनिकणगरयणविमल महरिहनिउणोवि य मिसिमित विरइयसुसि लिट्टविसिलसंठियपसत्थआविद्धवीरवलए, किंबहुना ?, कप्परुक्खए चेव सुअलंकिय विभूसिए नरिंदे सकोरंट महदामेणं छतेणं धरिज्जमाणेणं उभओ चउचामरवालवीइघंगे मंगलजयसद्दकया
SR No.009328
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages770
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size48 MB
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