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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०३० ३.१ सू०१ जीवानां कर्मबन्धकारणनिरूपणम् ६३. भावः। मिच्छादिट्ठी जहा कण्ह पक्खिया' मिथ्यादृष्टयः कृष्णपाक्षिकवत् नो क्रियावादिनः किन्तु अक्रियावादिनोऽपि अज्ञानिकवादिनोऽपि वैनायिकवादिनोऽपिभवन्तीति ! 'सम्मामिच्छादिट्ठी णं पुच्छा' सम्यग्मियादृष्टयो मिश्रष्टयः कि क्रियामादिनोऽक्रियावादिनोऽज्ञानिकवादिनो वैनयिकवादिनो वा भवन्तीति प्रश्नः पृच्छया संगृह्यते, भगवानाह-'गोयमा इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'नो किरियावाई' नो क्रियावादिनः नो वा अक्रियावादिनो भवन्ति किन्तु 'अन्नाणियवाई वि वेणइयवाई वि' अज्ञानिकवादिनोऽपि भवन्ति वैनयिकवादिनोऽपि भवन्ति, मिश्रा दृष्टयोहि जीवाः साधारणपरिणामत्वान्नो आस्तिका नवा नास्तिकाः किन्तु अज्ञानिकवादिनोऽषि नयिकवादिनोऽपि भवन्तीति भावः । 'नाणी जाव केवलनाणी जहा अलेक्से' ज्ञानिनो यावत्केवलज्ञानिनो हि अलेश्यजीववदेव क्रियावा. नहीं होते हैं । 'विच्छादिही जहा काहपश्खिया' मिथ्यादृष्टि जीव कृष्णपाक्षिक के जैसे क्रियावादी नहीं होते हैं। किन्तु वे अक्रियावादी भी होते हैं, अज्ञानवादी भी होते हैं और वैनपिकवादी भी होते हैं। 'सम्माभिच्छादिहीणं पुच्छ।' हे भदन्त ! जो जीव मिश्रदृष्टि होते हैं वे क्या क्रियावादी हैं ? या प्रक्रियावादी होले हैं ? या अज्ञानवादी होते हैं ? या चैनयिकवादी होते है ? उत्तर में प्रभुश्री कहते है'गोयमा! लो किरियापाई, नो अकिरियाबाई हे गौतम ! वे न क्रियावादी होते हैं और न अक्रियावादी होते हैं। किन्तु वे 'अन्नाणियबाई वि वेणइयचाई वि' अज्ञानवादी भी होते हैं और वैनयिकवादी भी होते हैं । क्यों की मिश्रष्टि जीव साधारण परिणामवाले होते हैं इसलिये वेन आस्तिक होते हैं और न नास्तिक होते हैं । 'नाणी जाव केवलनाणी जहा अलेरो ज्ञानी जीव यावत् केवल ज्ञानी जीव अलेश्य जीव के 'मिच्छादिदी जहा कणहपक्खिया' भिथ्याष्ट छ। पाक्षिन કથન પ્રમાણે કિયાવાદી હોતા નથી પરંતુ તેઓ અકિયાવાદી પણ હે ય છે. मज्ञानवाही ५० डाय छे गने वैनयिवाही ५ डाय छ 'सम्मामिच्छादिट्ठीणं पुच्छा' ३ लगवन् । भिटीवाय छ, तमाशुठियावाही હોય છે અથવા અકિરાવાદી હોય છે? અથવા અજ્ઞાનવાદી હોય છે? અથવા वनयिवाही लय छ १ मा प्रश्न उत्तरभां सुश्री ४ छे । 'गोयमा नो किरियावाई नो अकिरियावाई र गौतम । तेया ठियावाही होत नथी. तथा मठियावाही ५५ हात नथी 'अन्नाणियवाई वि वेणईयवाई' तमे। अज्ञान વાદી પણ હોય છે, અને વનચિકવાદી પણ હોય છે, કેમ કે મિશ્રદષ્ટિવાળા ७। साधारण परियामा डाय छे. 'नाणी जाव केवलनाणी जहा अलेस्से
SR No.009327
Book TitleBhagwati Sutra Part 17
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages812
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size54 MB
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