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________________ ७४६ भगवती 'जहा' इत्यादि, 'जहा कण्हलेस्साए चत्तारि उद्देसगा भवति' यथा कृष्णलेश्या प्रकरणे एतस्यैव शतकस्य पश्चमाधुद्देशले.पु चत्वार उद्देशका भवन्ति 'तहा इमे वि' तथा-तेनैव प्रकारेण इमेऽपि । 'कण्हलेस भवसिद्धिएहि वि चत्तारि उद्देसगा कायच्या कृष्णलेश्य भवसिद्धिक नैरयिकादिकैरपि कृष्णलेश्य भवसिद्धिक कृतयुग्म कृष्णलेश्य भवसिद्धिक व्योज भरसिद्धिक कृष्णले श्य द्वापरयुग्म कृष्णलेश्य भवसिद्धिक कल्योज रूपा श्चत्वार उद्देशकाः कर्तव्या इति प्रयस्त्रिंशत्तमात् पट्त्रिंशत्तमपर्यन्तोदेशका समाप्ताः ॥३३-३६॥ क्या वे नैरयिकों में से आकरके उत्पन्न होते हैं अथवा यावत् देवों में से आकरके उत्पन्न होते हैं ? इसका पूर्वातिदेशले उत्तर देते हुए प्रभुश्री गौतम से कहते हैं-'जहा कण्हलेस्लाए चत्तारि उद्देसगा भवंति' हे गौतम ! इसी शतक के पंचमादि चार उद्देशकों में जिस प्रकार से यताये गये हैं 'तहा इसे वि' उसी प्रकार से ये 'कण्हलेस भवसिद्धिए हि वि चत्तारि उद्देसमा काया कृष्णालेश्य भवसिद्धिक नैरयिकादि जीवों के साथ भी चार उदेशका पना देना चाहिये । जैसे-कृष्णलेश्य कृतयुग्म सवसिद्धिकोद्देशक १, कृष्णलेश योज भवसिद्विकोद्देशक २, कृष्णलेश्य द्वापर युग्म अवसिद्विकोदेशक ३, और कृष्णलेश्य कल्योज भयसिद्धिकोद्देशक ४ हस्त प्रकार से शशिरग्म में अक्षणलेश्य भवसिद्धिक नैथिों के सम्बन्ध में थे चार उद्देशक हो जाते हैं । इस प्रकार ३३ ३ उद्देशक से लेकर ३६ वें उद्देश तकके ४ उदेशक ४१ वे शतक में समाप्त हुए । ४१, ३३-३६॥ ઉત્પન્ન થાય છે? અથવા મનુષ્યોમાંથી આવીને ઉત્પન્ન થાય છે? અથવા દેવોમાંથી આવીને ઉત્પન્ન થાય છે ? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુશ્રી કહે છે કે 'जहा कण्हलेस्साए चत्तारि उद्देसगा भवंति' ३ गौतम ! माता शतना यांयमा अदृशामा २ प्रभाय ना यार देशा। उवामा मा०या छ, 'तहा इमे बि' मे प्रमाणे मा 'कण्हलेस भवसिद्धिएहि वि चत्तोरि उदेगा कायवा' वेश्याव सिद्धि २४ वानी समयमा ५५ यार ઉદ્દેશાઓ કહેવા જોઈએ. જેમ કે-કલેશ્યાવાળા કૃતયુગ્મ ભવસિદ્ધિક નૈરચિકેના સંબંધમાં પહેલે ઉદેશે ૧ કૃષ્ણલેશ્યાવાળા વ્યાજ ભવસિદ્ધિક નૈર ચિકેના સંબંધમાં બીજો ઉદેશે ૨ કૃષ્ણલેશ્યાવાળા દ્વાપરયુગ્મ ભવસિદ્ધિક નરયિકના સંબંધમાં ત્રીજે ઉદ્દેશ ૩ અને કૃષ્ણવેશ્યાવાળા કાજ ભવસિદ્ધિક નૈરયિકના સંબંધમાં થો ઉદેશે ૪ આ રીતે રાશિયુગ્મમાં કૃષ્ણલેશ્યાવાળા
SR No.009327
Book TitleBhagwati Sutra Part 17
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages812
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size54 MB
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