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________________ ७०९ प्रमेयचन्द्रिका सीका श०४१ उ.१ राशियुग्मनिरूपण यशः -आत्मसयममुबजीवन्ति-आश्रयन्नि विदधतीत्यर्थः अयदा आत्मनोऽयशः आत्मनोऽसंयममुपजीवन्ति-माश्रयन्ति किमिति प्रश्न:, भग समाह-गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'नो आयजसं उबजीति आय असं उरजीवंति' नो आत्मनो यश -आत्मसंयम रतम् नो उपजीवन्ति किन्तु आत्मायशः आत्मनोऽ संयममुपजीवन्ति आश्रयन्तीति । 'जइ आय अजसं उपजीति सलेम्मा अलेस्सा' हे भदन्त ! यद्यात्मयत्रः आत्ननोऽसंगानुपजीवन्ति, तदा किं ते जीवाः सलेश्या भवन्ति अलेश्या वा भवन्तीति प्रश्नः, भगवानाह-गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'सलेस्सा नो अलेस्सा' सलेश्याः लेश्यावन्त एव भवन्ति न तु छेश्यारहिता भवन्तीति । 'जइ यलेस्सा कि सपिरिया अकिरिया' हे भदन्त ! यदि ते जीवाः सलेश्याः तदा सक्रिया अक्रिश वा भवन्तीति प्रश्नः, भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'सकिरिया नो अकिरिया' सक्रिया एव भवन्ति न तु क्रिया रहिता भवन्तीति । 'जह सकिरिया तेणेन भवग्गहणेण तिझांति जाव आश्रय करते हैं 'गोयमः ! नो आयजन उघजीवंति आध अजसं जयजीवंति' हे गौतम ! वे आत्म संयम या आश्रय नहीं करते हैं किन्तु आत्म अलयम का ही आश्रय करते हैं। 'जह आप अजसं उवजीवंति, सलेहता अस्पा ' हे भदन्त ! यदि वे आल्ल असंयम का आश्रय करते है तो क्या थे लेख्यासहित ही होते है अथवा क्यारहित होते हैं ? 'गोयया सलेस्साको अलेस्ला' हे गौतम ! ये लेश्या सहित ही होते हैं लेश्या रहित नहीं होते है । 'जई ललेस्मा किं सकिरिया अकिरिया हे अदन्त ! यदि ये लेख्यासहिन होते हैं तो क्या वे क्रियायुक्त होते हैं ? अधया क्रियायुक्त नहीं होते हैं ? 'गोधमा! તેઓ ભ સ યમને આશ્રય કરે છે ? અથવા આત્મ અસયમને આશ્રય ४२ छ१ 'गोयमा ! नो आयजस उवरज्जत, आय अजस उजति' हे गौतम ! તેઓ આત્મ સંયમને આશ્રય કરતા નથી પર તુ - અસંયમને જ माश्रय ४२ ले 'जइ आय अजस उब जीव ति, सलेस्सा, अले. लगपन् જે તેઓ આત્મ અસ યમનો આશ્રય કરે છે તે શું તેઓ લેહ્યા સહિત હોય छ? त्या विनाना सोय ? 241 RAHI 31२५i प्रभुश्री हे छ 'गोयमा! सलेम्सा नो अलेस्सा है गीतम! तेस या सहित साय थे, वेश्याडित होता नथी 'जह सलेस्था कि सकिरिया अकिरिया' है मगर ले तो त्या સહિત હોય છે, તે શું ક્રિયા યુક્ત હોય છે? અથવા ક્રિયાયુન હેતા નથી? GIRभा सुश्री ४ छे-गोयमा ! सकिरिया नो किरिया' हे गीतम तय लियारहित हाय छे, या बिनाना होता था. 'जइ किरिया तेणेव भवग.
SR No.009327
Book TitleBhagwati Sutra Part 17
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages812
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size54 MB
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