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________________ hrefद्रका टीका श०४१ उ. १ राशियुग्मनिरूपण‍ 004 संख्येयान् समयान् अन्तर कृत्वा समुत्पद्यन्ते । 'निरंतरं वज्जसाणा जहन्नेणं दो समया' निरन्तरमुद्यमानाः जघन्येन द्वौ समयौ यात्रa 'उक्कोसेणं असंखेज्जा समया अणुसमयं अविरहियं निरंतर उबवज्जेति' उत्कर्षेणासंख्येणन सगयान, यावत् अनु समयमविरहित' निरन्तर' सम्पद्यन्ते । 'अनुममय' इत्यादि पत्त्रयमे कम् |'' ! जीवा जं समय' कडजुम्मा तं समयं तेओगा' ते खलु भदन्त । जीवा यस्मिन् समये कृतयुग्मा इत्यभिधीयन्ते तन्निमये किं त्र्योज पदवाच्याः सम्भवन्ति ? तथा - 'जं समयं तेओगा तं समय कडजुम्मा' यस्मिन् समये योज पदवाच्याः तस्मिन् समये कृतयुग्म शब्दान्याः सम्भवन्ति किमिति प्रश्नः, उत्तरमाह - 'णो इणडे समट्टे' नायमर्थः समर्थः एक संख्यातिनां सान्तर उत्पन्न होने पर वे जघन्य से एकसमय का और उत्कृष्ट से असंख्यात समयका अन्तर कर के उत्पन्न होते है । 'निरंतर' उववज्जमाणा जहन्नेणं दो समय और निरन्तररूप से जब वे उत्पन्न होते हैं तब वे जघन्य से दो समय तक एवं 'उक्को सेणं असंखेज्जा समया अणुसमयं अविरहियं निरंतर उति उत्कृष्ट से असंख्यातनमय तक प्रत्येक समय में विना अन्तर के उत्पन्न होते रहते हैं । 'अनुसमय आदि ये तीन पद एक ही वाले हैं । 'ते णं' भते ! जीवा जं' समय कडजुम्मा तं समयं तेभोना' हे भदन्त । वे जीव जिस समय कृतयुग्मपदचाप होते हैं उस समय में वे क्यो व्योपदवाच्य होते हैं ? तथा-'ज' समयं तेओगातं समयं काउजुम्मा' वे जिस समय में व्यपदवाच्य होते हैं उस समय में वे कृतयुग्मवाच्य होते है ? में ઉત્ત્પન્ન થાય ત્યારે તેએ જઘન્યથી એક સમયથીઅને ઉત્કૃષ્ટથી અસ‘ખ્યાત સમયના અતરથી ઉત્પન્ન થાય छे. 'निर तर' उबवज्जमाना जहणेण दो समया' भने निर'तरयगाथी क्यारे तेथे। उत्यन्न थाय छे, त्याने तेथे ध न्यथी मे समय सुत्री भने 'उक्कोसेणं' असंसेज्जा समया अणुमयं अविरहिय निर'तर' उववज्जंति' ७त्सृष्टथी असत समय सुधी प्रत्येक समयभां अंतर વિના ઉત્પન્ન થતા રહે છે. “અતુ સમય વગેરે આ ત્રણ પદે એક જ प्रारना अर्थने तापवावाणा हे 'ते णं' भवे जीवा जं समय कउजुम्मा त સમય'. તેમો' હે ભગવન્ તે જીવે જે સમયમાં કૃતયુગ્મ પાવાળા હાય छे, ते वने तेथे हा होय हे ? तथ' 'ज समय तेओगा त' समय कडजुग्मा' ? वणते तेथे त्र्योन्यथी युक्त होय हे, ते ने તેએ શુ કૃતયુગ્મ પદવાળા હાય છે? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુશ્રી ગૌતમ भ० ८९
SR No.009327
Book TitleBhagwati Sutra Part 17
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages812
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size54 MB
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