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________________ प्रमेन्द्रका ठीका २०३९ कृ.कृ. असंक्षिपञ्चेन्द्रिय जीवोत्पातः ६२१ समयानन्तर संख्यान्तरसद्भावात् 'उकोसेणं पुचकोडीपुहुत्तं' उत्कर्षेण पूर्वकोटि पृथक्त्वं द्वि पूर्वकोटित आरभ्य नव पूर्वकोटिपर्यन्तमित्यर्थः । 'ठिई जहन्ने एक्क समयं ' स्थितिरायुषः जघन्येनैकसमयममाणा समयानन्तरं भवान्तरसद्भावात् 'उक्को सेणं पुचकोडी, उत्कर्षेण पूर्वकोटि: । 'सेसं जहां वे दिया "" शेषम् अवगाहना स्थित्यतिरिक्तं यथा द्वीन्द्रियाणां कथितं तथैव ज्ञेयमिति । 'सेवं भंते ! सेवं भंते! त्ति' तदेवं भदन्त ! तदेव भदन्त । इति ॥ हपसंज्ञिषञ्चेन्द्रियमहायुग्मशतानि समाप्तानि ॥ ३९-१२। | एकोनचत्वारिंशत्तमं शतकं समाप्तम् ||३९|| णा जघन्य से एक समय प्रमाण और 'उक्को सेणं' उत्कृष्ट से 'पुव्वकोडी पुहुत्त' पूर्वकोटि पृथक्त्व है। अर्थात् दो पूर्वकोटि से लेकर नौ पूर्व कोटि तक है । 'ठिई जहन्ने एक्कं समयं उक्कोसेण पुन्यकोडी' इनके आयुष्य की स्थिति जघन्य से एक समय की और उत्कृष्ठ से एक पूर्व कोटि की है । 'सेस' जहा बेह दियाण" इस प्रकार अवगाहना और स्थिति इन दोनों भिन्नताओं के अतिरिक्त और सब कथन द्वीन्द्रिय जीवों के सम्बन्ध में जैसा कहा गया है वैसा ही है 'सेव' भंते । सेव' भंते! त्ति' हे भदन्त ! आपने जो यह कथन किया है । वह सब सर्वथा सत्य ही है २ | इस प्रकार कहकर गौतमने प्रभुश्री को वन्दना की और नमस्कार किया वन्दना नमस्कार कर फिर वे संयम और तप से आत्मा को भावित करते हुए अपने स्थान पर विराजमान हो गये । ॥ असंज्ञि पञ्चेन्द्रिय शत समाप्त ३९ वां शतक समाप्त। प्रभाणु भने उहृष्टथी 'पुव्त्रकोडी पुढत्तं' पूर्व अटि पृथव छे. अर्थात् पूर्व डोटीथी सर्धने नव पूर्व अटि सुधी उडेल छे. 'ठिई जहणेणं' एक्क' समय' उक्कोसेण' पुव्वकोडी' स्थिति आयुष्य अर्मनी स्थिति भधन्यथी शो सभयनी सने उत्कृष्ट ! पूर्व अटिनी छे. 'सेव जहा वेइ दियाण" मा रीते भवगार्डना અને સ્થિતિ આ એ વિષયના ભિન્નપા શિવાય માઠીનુ' સઘળુ કથન એ ઇન્દ્રિયવાળા જીવેાના સબધમાં જે પ્રમાણે કહેવામાં આવેલ છે, એજ अभाषेनु छे, तेभ समवु. 'सेव' भ'वे ! सेव' भते ! त्ति' हे भगवन् आये या विषयभां ने धन કર્યું છે, તે સર્વથા સત્ય છે. ૨ આ પ્રમાણે કડીને ગૌતમસ્વામીએ પ્રભુશ્રીને વંદના કરી નમસ્કાર કર્યો વદના નમસ્કાર કરીને તે પછી તપ અને સયમથી પોતાના આત્માને ભાવિત કરતા થકા પેાતાના સ્થાન પર બિરાજમાન થયુા. ॥सू०॥ અસ`ત્તિ ૫ ચેન્દ્રિય શતક સમાપ્ત ઓગણચાળીસમું શતક સમાપ્ત ૫૩૯૫
SR No.009327
Book TitleBhagwati Sutra Part 17
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages812
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size54 MB
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