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________________ ५८८ भगवता सूत्र ' एवं ' काउलेस्स बसिद्धिय एगिंदिपदिवि तहेव एक्कारस उद्देसगसंजुत्तं सयं' एवं पूर्ववदेव कापोतलेश्य भवसिद्धिक कृतयुग्मकृतयुग्मै केन्द्रियैरपि तथैव पूर्ववदेव एकादशोदेशक संयुक्तं शतं भवति । एते जीवा कुत उत्पन्ते ? इत्यादि प्रश्नोत्तरादिकं पूर्ववदेवोहनीयम् । 'एवं एयाणि चत्तारि भवसिद्धियसयाणि ' एवमेतानि चत्वारि भवसिद्धिकशतानि औधिक कृष्णनील कापोवलेपाख्यानि चत्वारि भवन्ति 'चउ वि ससु' चतुर्वपि शतकेषु 'सव्वे पाणा जाव उबवन्नपुच्चा ? नो इण्डे समड़े' सर्वे घाणा यावद् उत्पन्न पूर्वाः ? नायमर्थः समर्थः । टोकार्थ- 'एवं पावलेस्स भवसिद्विय एगिदियहिं वि तहेव एक्झारल उद्देखग ंजुतं खयं' इसी प्रकार से कापणेतलेयाबाले भव सिद्धि कुनयुग्म राक्षिप्रति एथेन्द्रिय जीवों के साथ भी पहिले के जेसा ११ उदेशकों वाला शत होता है । अतः ये जीव कहां से आकर के उत्पन्न होते हैं इत्यादि महन और हे गौतन ! ये जीव तिर्यग्योनिकादिकों में से आकर के उत्पन्न होते हैं इत्यादि उत्तर पूर्वोक्त जैसा ही जानना चाहिये । ' एवं एमाणि चत्तारि भवसिद्विषयाणि चउसु विस' इन अधिक, कृष्ण, नील और जानलेवावाले भवसिद्धिक एकेन्द्रियी चार शतकों में 'सव्वे पाणा जाब उचदन्नपुव्वा, नो इणट्टे सट्टे' समस्त प्राण यावत् समस्त सत्व पहिले उत्पन्न हो चुके है यह अर्थ समर्थित नहीं है ऐला कहना चाहिये । क्यों कि ऐसे अभव्य एकेन्द्रिय जीव अनन्त हैं जो इल रूप से उत्पन्न नहीं हुए हैं। “आमा मेन्द्रिय शतम्ना प्रारल " 'एव' का उल्लेरस अवसिद्धियागिदिएहिं वि तहेव एक्कारस उद्देस संजुत्तं सर्व' ४ प्रमाये अयोतत्रेश्यावाणा भवसिद्धि द्रुतयुग्भ द्रुतयुग्भ રાશિવાળા એકેન્દ્રિય જીવાની સાથે પણ પડેલાં કહ્યા પ્રમાણેના ૧૧ અગિયાર ઉદ્દેશાવાળુ શતક થાય છે. તેથી જીવા કયાંથી આવીને ઉત્પન્ન થાય છે ? વિગેરે પ્રશ્નો અને હૈ ગૌતમ!તે જીવેાતિય ચેાનિક વિગેરેમાંથી આવીને उत्पन्न थाय छे, विगेरे उत्तर पडेला उद्या प्रमाणे अमल सेवा 'एव' एयाणि वत्तारि भवसिद्धिययाणि चउसु वि सपसु' गोधि, ध्रुष्णु, नीस, भने अयोत वेश्यावाणा अवसिद्धि मेडेन्द्रिय वा संधी यार शतभां 'सब्वे पाणा जव ववन्नपुत्रा नो इणट्टे, समट्टे' अघणा अथे। यावत् सघणा सत्वा सां
SR No.009327
Book TitleBhagwati Sutra Part 17
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages812
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size54 MB
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