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________________ ५७२ भगवतीस्त्र भेदः सामान्य केन्द्रियेभ्यः कृष्णलेश्य कृतयुग्मकृतयुग्मैकेन्द्रियाणाम् । 'ते णं भंते ! जीवा कि कण्हलेस्सा' ते खल्ल भदन्त ! जीवाः कि कृष्णलेश्यावन्तः ? उत्तरमाह-'हंता गोयमा ! कण्हलेस्सा' हन्त गौतम ! ते जोवाः कृष्णलेश्यावन्तो भवन्तीति ! 'ते गं भंते ! कण्हलेस्स कडजुम्मकडजुम्म एगिदियत्ति कालो केवचिरं होति' ते खल भदन्त ! कृष्णश्यकृतयुग्मकृतयुग्मैकेन्द्रिया इति कालतः किच्चिरं भवन्तीति प्रश्नः । भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि, गोयमा' हे गौतम ! 'जहन्नेणं एक समयं' जयन्येन एक समयं जघन्यत एकसमयानन्तरं संख्यान्तर भवन्तीति । 'उकोसेणं अंनो मुहत्तं' उत्कर्पणान्तर्मुहूत यावत् कृष्णलेश्यै केन्द्रिया भवन्तीति । तदनन्तरं कृतयुग्मकृतयुगमत्वानुभवाभावात् ‘एवं ठिईए वि' एवं षता है-अर्थात् सामान्य एकेन्द्रियों की अपेक्षा इन कृष्णलेश्यावाले कृतयुग्म कृतयुग्म राशिपमित एकेन्द्रियों के कथन में ऐसी विशेषता है-'ते ण मते ! जीणा कि काहलेसन' हे भदन्त ! क्या ये जीव कृष्णलेश्यावाले होते हैं ? 'हंता गोयमा !' हां, गौतम ! ये जीव कृष्णलेश्याघाले होते हैं । तेण भते ! कहलेस्स कडजुम्म कडजुम्म ‘एगिदियति कालो केवचिचर होति' हे भदन्त । ये कृष्णलेश्यावाले कृतयुग्म कृतयुग्म राशिप्रमित एकेन्द्रिय जीव कालकी अपेक्षा इस रूप में कब तक रहते है ? 'गोयमा ! जहन्नेण एक्कं समय उक्कोसेण अंनोमुहत्तं' हे गौतम ! ये एकेन्द्रिय जीव इस रूप में जघन्य से तो एक समय तक रहते हैं और उत्कृष्ट से एक अन्तर्मुहर्त तक रहते हैं। इस के बाद इनमें यह रूपता नहीं रहती है। 'एवं ठिईए वि' इसी प्रकार नाणत्त' ५२'तु महियां को विशेष पा छ र्थात् सामान्य मेन्द्रिय કરતાં આ કૃષ્ણલેશ્યાવાળા કૃતયુમ ડૂતયુગ્મ રાશિવાળા એકેન્દ્રિય જીવોના थनमा मा प्रमाणे विशेषा छ -'ते ण भते ! जोवा कि कण्हलेस्सा' हे भगवन् शु ते वो वेश्यावाणा डाय छ १ ह ता गोयमा!' । गौतम! भावेश्यावा हाय छे. 'ते ण म ते ! कण्हलेस कड़जुम्म कड़जुम्म एगिदियत्ति काल भो केवच्चिर होति' 3 सावन मासेश्यावाणा तयुग्म કૃતયુગ્મ રાશિવાળા એકેન્દ્રિય જીવ કાળની અપેક્ષાએ આ રૂપથી કયાં સુધી રહે छ ? उत्तरमा प्रसुश्री ४३ छ -'गोयमा ! जहननेण एक समय' उक्कोसेण अंतोमुत्त' गौतम ! म सन्द्रिय ७ मा ३५मा धन्यथा तो मे સમય સુધી રહે છે, અને ઉત્કૃષ્ટથી એક અંતર્મુહૂર્ત સુધી રહે છે. તે પછી तमाम मा ४२ पा रहेतु नथी. 'एवं लिईए वि' मे प्रभाय ते माना
SR No.009327
Book TitleBhagwati Sutra Part 17
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages812
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size54 MB
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