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________________ भगवतीचत्रे. ५०८ • CONT ये खलु तस्य रशेपहारसमया द्वापरयुग्ना भवन्ति तस्मात्कारणात् स राशिविशेषो द्वापरयुग्मकृत्युग्य इत्यभिधीयते स च जघन्यतोप्टात्मक', इति (८) ९ । 'जेणं रासी चक्करणं अहारेणं अहीरमाणे तिरज्जवलिए' यः खलु राशि चतुष्केणापहारेणापहियमाण स्त्रिपर्यवहितो भत्रति तथा- 'जेणं वरस रासिस्स अहारसमया दावरजुम्मा से त्तं दावरजुम्मतेओगे' ये खलु तस्य राशेरपहारसमया द्वापरयुगमरूपा भवन्ति तस्मात्कारणात् स राशि विशेष: द्वापरयुग्मयोज इति कथ्यते स च जघन्यत एकादशात्मकः (११) इति १० । 'जणं रासी चउक्करणं अवदारेणं अवहीरमाणे दुपज्जवसिए' यः खलु राति चतुष्केणापहारेणापहियमाणो द्विपर्यवसितो भवति तथा - 'जेण तस्स रासिस्स अवहारसNया दावरजुम्मा से तं दावरजुम्म दावरजुम्मे' ये खल्ल तस्य राशेरपहारसमया द्वापरयुग्मरूपा भवन्ति तस्मात्कारणात् स राशिविशेषो द्वापरयुग्म द्वापरयुग्म इति कथ्यते स च जघजिस राशि के अपहार समय द्वापरयुग्म हैं ऐसी यह राशि द्वापरयुग्म कृत युग्म कही गई है । वह राशि जघन्य रूप से ८ संख्यात्मक है । ९ 'जे रासी चक्कणं अवहारेणं अवहीरमाणे तिपज्जवसिए' जो राशि चार से अपहृन होकर अन्त में तीन बचाती है। तथा 'जे णं तस्स रासिस्स अवहारलमया दावरजुम्मा सेन्तं दाबरजुम्मतेओगे' जिस राशि के अपहार समय द्वापरयुग्म रूप हैं ऐसी यह राशि द्वापरयुग्म प्रोजरूप है । यह संख्या में जघन्य से ११ संख्या रूप होती है । 'जेणं शिसी चक्करणं अवहारेणं अवहीरमाणे दुपज्जबसिए' जो राशि चार से अपहृत होकर - विभाजित होकर अन्त में दो बचाती हैं तथा 'जेणं तस्स राहिल अवहारसस्या दावरजुम्मा जिस राशि के अपहार समय द्वापरयुग्म रूप है-ऐसी वह राशि द्वापरयुग्म द्वापरयुग्म रूप है । यह जघन्य संख्या में १० रूप होती है । जेणं रासी चक्क एणं युग्भ द्रुतयुग्म छे ते ८ संख्यात्मङ छे. ८ 'जेणं' रासी च उक्कएण वारेण अबहीरमाणे ति पज्जवखिए ? राशी यारथी अपहृत थने छेवटे श्रषु मथावे 'छे, तथा 'जे ण' तस्व राखिस्स अपहारसमया दावरजुम्मा सेत्त दावर जुम्म तेओगे' के शशिने। अपहार समय द्वापरयुग्म ३५ छे, शेवी ते राशी द्वापरयुग्म यो ३५ छे, तेनी धन्य संख्या ११नी होय छे 'जेणं रासी च करण अवहारेण अवहीरमाणे दुपज्जवसिए' ले राशी सारथी अपहार ने वहेयवाथी छेवटे मे मये थे, तथा 'जेण' तस्स रासिस्व अपहारसमया दावर जुम्मा' ने राशीना अपहार सभय द्वापरयुग्भ ३५ छे, भेवी ते राशि द्वार युग्भ द्वापरयुग्म ३५ है, आ संख्यामा १० हस ३५ होय छे. 'जेणं रासी
SR No.009327
Book TitleBhagwati Sutra Part 17
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages812
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size54 MB
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