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________________ her fद्रका टीका ०३४ अ. श०१ सू०५ विग्रहगत्योत्पातनिरूपणम् ३९३ - णान्तिकसमुद्घातं कृत्वा यो अव्यः योग्यः, अधोलोकक्षेत्रनाडया वाहये क्षेत्र अपर्याप्त सूक्ष्मपृथिवीकायिकतया तादृश पृथिवीकायिक स्वरूपेणोत्पत्तम्- समुत्पतिम् आसादयितुम्, 'से णं भंते ! इसमइएणं' स खलु भदन्त ! कति सामयिकेन विग्रहेण समुत्पद्यतेति प्रश्नः । अस्योत्तरमतिदेशेनाह - ' एवं ' इति । एवं यथाअधोलोकक्षेत्रनाडी बाह्यक्षेत्रे समवहताना मूर्ध्वलोक क्षेत्रनाडी वाह्यक्षेत्रे समुत्पित्सूनां विषये उपपातो वर्णित स्वथैव - ' ऊड्डलोय खेत्तनालीए वाहिरिल्ले खेत्ते समोइयाणं' ऊर्ध्वलोक क्षेत्रनाडया वाले क्षेत्रे समवद्दतानां पृथिव्याये केन्द्रियाणाम्, 'अहेलोय खेत्तनालीए वाहिरिल्ले खेत्ते उबवज्जमाणाणं' अधोलोक क्षेत्रनाडया वाले क्षेत्रे समुत्प: द्यमानानामपि 'सोचेच गमओ निरवसेसो माणियन्त्रो' स एव-पूर्वोक्त एव अधोलोकक्षेत्रनाडयाः बहिः क्षेत्राद् ऊईलोक क्षेत्रनाडी as: क्षेत्रसमुत्पत्सु सदृश एव गमको निरवशेषः - समग्रो भणितव्यः । कियत्पर्यन्तं पूर्वमकरणमिह भणितव्यम्, तत्राह 'जाव' इत्यादि । 'जाब चायरवणस्सइकाइयाओ पज्जत्तओ वायरअधोलोकस्थित नाडी के बाहिरी प्रदेश में उत्पन्न होने के योग्य हुआ तो 'लेणं अंते । कइस महणं' हे भदन्त ! ऐसा वह जीव वहां कितने समयवाले विग्रह से उत्पन्न होता है ? अतिदेश से उत्तर देते हुए प्रभुश्री गौतम से कहते हैं 'एच' 'हे गौतम! जिस रीति से अधोलोकस्थित प्रसवाडी के बाह्य प्रदेश में समवहत हुए पृथिव्यादि एकेन्द्रिय जीवोंके ऊर्ध्य लोकस्थित त्रसनाडी के बाह्यप्रदेश के विषय में उपपातका - उत्पादका कथन किया गया है उसी रीति से ऊर्ध्व लोकस्थित सनाडी के बाह्यप्रदेश में समवहत हुए पृथिव्यादि एकेन्द्रिय जीवों के अधोलोकस्थित मनाली के बाह्यप्रदेश में उत्पाद का कथन है ऐसा जानना चाहिये । यही बात 'सो चेव गमओ निरवसेसो भाणियव्बो' इस सुत्रपाठ द्वारा प्रदर्शित की गई है। और यह सब पूर्व वज्जिचए' ते मघोषोऽभां रडेस त्रसनाडीना महारना अद्देशमां उत्पन्न थवाने योग्य थये। होय तो 'से णं भंते ! कइ समइएणं०' हे लगवन् मेव। ते જીવ કેટલા સમયવાળી વિષ્રહ ગતિથી ત્યાં ઉત્પન્ન થાય છે ? આ પ્રશ્નના ઉત્તર અતિદેશ (ભલામણુ)થી આપતાં પ્રભુશ્રી કહે છે કે-‘શ્ય’ હે ગૌતમ ! જે રીતે અધેલાકમાં રહેલ સનાડીના ખહારના પ્રદેશમાં સમુદ્લાત કરેલ પૃથ્વીકાયિક વિગેરે એકેન્દ્રિય જીવાને ઉલેમાં રહેલ ત્રસનાડીના ખહારના પ્રદેશના વિષયમાં ઉપપાતનુ કથન કહેલ છે. તેજ પ્રમાણે આમના ઉત્પાદનું अथन पशु छे, तेभ सभन भन वात 'सो चेव गमओ निरवसेस्रो ि ચન્દ્વો' આ સૂત્રપાડ઼ દ્વારા બતાવવામાં આવેલ છે અને આ સઘળુ પહેલાનું 3 भ० ५०
SR No.009327
Book TitleBhagwati Sutra Part 17
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages812
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size54 MB
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