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________________ भगवती 1920 'सेढी उपमाणे विसयहरणं विग्गणं उपज्जेज्ज' द्विघातो चक्रया श्रेण्या समुत्पद्यमानः त्रिसामयिकेन विग्रहेण समुत्पद्येतेति । 'से तेणद्वेणं' तत्र्त्तेनार्थे न हे गौतम । एवमुच्यते - द्विसामयिकेन वा त्रिसामयिकेन वा विग्रहेण उत्पद्येतेति । "एवं पञ्जत वायरउ काइएस वि उपवासयन्दो' एवं यथा - अपर्याप्तसूक्ष्मपृथि"वीकायिकस्य अपर्याप्त वादरतेजस्कायिकेषु उपपातो वर्णितस्तथैव पर्याप्त केष्वपि वादरतेजरकायिकेषु उपपातो वर्णनीयः मकारस्तु स्वयमेवोहनीय, इति । 'वाउकाइय 'aute इकाइयत्ताए चक्करणं भेदेणं जहा आउक्काइयत्ताए तदेव उववाएयन्त्रो' वायुकायिकतया वनस्पतिकायिकतया च चतुष्केन भेदेन यथा अकायिकतया तथैव 'जीव उत्पत्ति स्थान में समयक्षेत्र में बादरतेजरकाधिक रूप से उत्पन्न 'होता है वह वहां दो समय वाले विग्रह से उत्पन्न होता है। 'दुहओ कोए सेडीए उबवजमाणे तिरुमहणं विग्गणं उववज्जेजा' और जब वह विधातः काश्रेणिसे गमन करता हुआ वहां उत्पन्न होता है तब वह वहां तीनसयाले विग्रह से उत्पन्न होता है । 'से तेणट्टेणं' इसी ""कारण हे गौतम! मैने ऐसा कहा है कि वह वहां दो समयवाले अथवा तीन समयवाले विग्रह से उत्पन्न होता है । ' एवं पज्जत्तएसु बायरतेउकाइएस चि उचबाइएयन्दो' इसी रीति के अनुसार अपर्याप्त सूक्ष्म पृथिवीकायिक जीवके उत्पादका वर्णन पर्याप्त पादरतेजस्कायिकों में भी कर लेना चाहिये तथा आलाप प्रकार इस सम्बन्ध में अपने आप उद्भावित कर लेना चाहिये । 'वाउक्काहयचणरसका इयत्ताए चर"करणं भेदेणं जहा आउक्काहत्तार तहेब उवबाएयन्यो' इस अपर्याप्त સ્થાનમાં–સમયક્ષેત્રમાં બાદરતેજસ્કાયિકપણાથી ઉત્પન્ન થાય છે. તે ત્યાં બે सभयवाजी विथड गतिथी उत्पन्न थाय छे. 'दुइओ वंकाए सेढीए उववज्जमाणे तिसमहणं विणं उवच्जेज्जा' अने क्यारे द्विधाता वा श्रेणीथी जभन કરીને ત્યાં ઉત્પન્ન થાય છે, ત્યારે તે ત્યાં ત્રણ સમયવાળી વિગ્રહ ગતિથી उत्यन्न थाय छे. 'से तेणट्टेनं' मा अरथी हे गौतम! में मेवु ं छु ं છે કે-તે ત્યાં એ સમયવાળી વિગ્રહ ગતિથી અથવા ત્રણ સમયવાળી વિગ્રહ 'गतिथी उत्पन्न थाय छे, 'एव' पज्जतसु बायरते उझाइएस वि उववायवो' ''આજ રીતે અપર્યાપ્ત સૂક્ષ્મ પૃથ્વીકાયિક જીવના ઉત્પાતનું વન પર્યાપ્ત બાદરતેજસ્કાયિકામાં પણ કરી લેવું. તથા તેના અલાપને પ્રકાર' આ विषयभां स्वयं मनावीने समल देवे। ले थे. 'वाउकाइयवणस्स इकाइयत्ताए चक्कणं भेदेणं जहा आउकाइयत्ताए तदेव उजवाएयन्वो' मा अपर्याप्त सूक्ष्म " 1 1
SR No.009327
Book TitleBhagwati Sutra Part 17
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages812
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size54 MB
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