SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 394
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ __भगवती फस्य शर्करापमा पूर्वचरमान्ते समवहत्य शर्करापमा पश्चिमचरमान्ते, सा पद्यमानस्य अपर्याप्त सूक्ष्मपृथिवीकायिकादारभ्य यारत् पर्याप्त सूक्ष्म तेजस्का. 'यिकेषु उत्पतिं वदन् एष एव कमो ज्ञातव्य इति । अथ एतदेव समयक्षेत्रमाश्रित्याह-'अपज्जत सुहुमपुढवीकाइए णं अंते' अपर्याप्त सूक्ष्मपृथिवीकायिकः खलु भदन्त ! 'सक्करप्पभाए पुढवीए पुरथिमिलले चरिमंते समोहए' शर्करा. प्रभाया द्वितीय पृथिव्याः पौरस्त्ये चरमान्ते समवहतः, मारणान्तिकसमुद्घातं कृतवान् 'समोहणिचा जे भविए समयखेत्ते अपज्जत्तवायरतेउकाइयत्ताए उपवज्जित्तए' समवहत्य मारणान्तिकसमुद्घातं कृत्वा यो भव्यः समयक्षेत्रे अपर्याप्तवादरतेजस्कायिकतया-अपर्याप्तवादरतेजस्कायिकरूपेण उत्पत्तुम् , 'से गं भंते ! कइ समइ एणं पुच्छा' स खलु भदन्त ! कति सामयिकेन विग्रहेण उत्पहुआ है । तथा च-अपर्याप्त सूक्ष्मपृथिवीकायिकका शर्कराप्रभा पृथिवी के पूर्ववरमान्त में मारणान्तिक समुद्घात द्वारा मरण कहकर जैसा उसका शर्करामभापृथिवी के पश्चिम चरमान्त में अपर्याप्त सूक्ष्मपृथिवी कायिक रूप से उत्पाद एक अथवा दो अथवा तीन समयवाले विग्रह द्वारा कहा गया है-सो इसी प्रकार से इसकी उत्पत्ति पर्याप्त सूक्ष्म तेजस्कायिकों तक में कह लेनी चाहिये । 'अपज्जत्त सुहुम पुढवीकाइएणं भंते ! 'हे भदन्त ! जिस अपर्याप्त सूक्ष्मपृथिवीकायिक जीवने सक्करप्पभाए पुढवीए पुरथिमिल्ले चरिमंते समोहए' शर्कराप्रभा पृथिवी के पूर्व चरमात में सारणान्तिश लनुद्घात से मरण किया 'समोहणित्ता जे भविए समयखेत्ते अपज्जत्त बायर तेउकाइयत्ताए' और मरकर वह समयक्षेत्र अढाई द्वीप समुद्र में अपर्याप्त बादतेज. स्कायिक रूप से उत्पत्ति के शोग्य हुआ तो 'लेणं अंते ! कइसमइएण ર્યાપ્ત સૂમ પૃથ્વીકાયિકોનું શર્કરાપભા પૃથ્વીના પૂર્વ ચરમાન્તમાં મારણાનિક સમુદ્યાત દ્વારા મરણ કરીને જે રીતે તેઓનો શર્કરા પ્રભા પૃથ્વીના પશ્ચિમચરમાતમાં અપર્યાપ્ત સૂમ પૃથ્વી કાયિકપણાથી ઉત્પાદ એક અથવા બે અથવા ત્રણ સમયવાળી વિગ્રહ ગતિથી કહેલ છે, તે એજ પ્રમાણે તેઓની पत्ति पति सूक्ष्म ते४२ यि। सुधीमा हेवी नो 'अपज्जत्तसुहुमपुढवीकाइएण मंते ।" उ सन् २ मर्यात सूक्ष्म पृथ्वी।यि: ० 'सक्करप्पभाए पुढवीए पुरथिमिल्ले चरिमते समोहए' शरामा थाना पूर्व य२मान्तमा भान्ति समुदधातथी भर पाभ्य। 'समोहणित्ता जे भविए समयखेत्ते अपज्जत्तवायरते उकाइयत्ताए उबवज्जित्तए' मने मरीन समय ક્ષેત્ર (અઢી દ્વિીપ)માં અપર્યાપ્ત બાદરતેજસ્કાયિકપણાથી ઉત્પન થવાને ચોગ્ય
SR No.009327
Book TitleBhagwati Sutra Part 17
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages812
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size54 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy