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________________ भगवतीने ज्ञातव्यमितिभावः । एवं जहेब पुरथिमिल्ले चरिमंते सयपदेसु वि समोइया एवं यथैव पौरस्त्ये चरमान्ते सर्वपदेण्यपि अपर्याप्त पर्याप्तादि भेदभिन्नपृथिव्यादि चनस्पतिकायिकान्त विंशति स्थानेषु समरहताः पचत्पिमिल्ले चरिमंते समयखेचे य उवाइया' पाश्चात्ये चरमान्ते पृथिव्यपू वायुबनस्पतिकायिकाः समयक्षेत्रे पापर्याप्तवादपर्याप्तवादरतेजस्कायिका उपपातिताः । 'जे य समयखेत्ते समोहया ये च समयक्षेन्ने समबहताः सता, 'पचत्थिगिल्ले चरिमते समयखेने य उववाहया' पाश्चात्ये चरमान्ते पृथिव्यादय श्वस्वार, समयक्षेत्रे च बादर'तेजस्कायिका उपपातिताः। एवं एएणं चेव कमेणं' एदमेरोन क्रयेण, 'पञ्चस्थिमिरले चरिमंते समयखेत्ते य समोहया पुरथिमिलले चरिमंते समयखेते य इस सूत्रपाठ मारा यहां लाई गई है । 'एवं जहेच पुरस्थिमिस्ले परिमंते सम्मपदेसु वि समोरया पच्चस्थिलिल्ले चरिमंते लमयखेस य उववाहया' तथा इल स्यून पाठ द्वारा सूमार ऐसा लपझा रहे हैं कि जैसा पूर्वचरमान्त में अपर्यापन पनि आदि भेद विशिष्ट पृथिवी आदि से लेकर वनस्पतिकाधिक लस के २० स्थानोवाले जीवोंका मारणान्तिक समुद्घात करके मरण कहा गया है और मरण करके जैसा उनका पाश्चात्य चस्मान्त के पृथिवी अपू चायु और वनस्पतिकाथिकों में उपपात कहा गया है तथा अपर्याप्त पादर और पर्याप्त बादर तेजस्कायिकों का समयक्षेत्र में उत्पाद कहा गया है तथा 'जे य समखेत्ते समो. या पच्चस्थिमिल्ले चरिमंते समयखेत्ते य उचाइया' जो जीव बाद अपर्याप्त तेजस्कायिक, बादर पर्याप्त तेजहभाषिक्ष-समयक्षेत्र में मारणातिक समुद्घात करके पाश्चात्य चरम्मान्त में-रत्नप्रभा पृथिवी के पश्चिम-चरमान्त में एवं समयक्षेत्र में उत्पन्न हुए कहे गये हैं। 'एवं समावेस छे. 'एवजहेव पुरथिमिल्ले चरिमंते सव्वपदेस वि समोइयां पच्छस्थिमिल्ले चरिमंते समयखेते य उववाइया' तथा ॥ सूत्रा8 द्वा२। सूत्रार એવું સમજાવે છે કે-જેમ પૂર્વે ચરમાનમાં અપર્યાપ્ત પર્યાપન વિગેરે ભેજવાળા પૃથ્વીકાય વિગેરેથી લઈને વનસ્પતિકાય સુધીના ૨૦ વીસ સ્થાનમાં ભારણા ન્તિક સમુદ્દઘાત કરીને જીવનું મરણ કહેવામાં આવેલ છે, અને મરણ કહીને જે રીતે તેઓનું-એટલે કે પૃથ્વી, અપ, વાયુ, અને વનસ્પતિકાયિકમાં-એટલે पश्रिम यरमान्तमा ५५ात त छ, तथा 'जे य समयलेते समोठ्या पच्चत्थिमिल्ले चरिमते ! समयखेते य उववाइया' रे ७१.४२ २५५यान ते , બાદર પર્યાપ્ત તેજરકાયિક સમય ક્ષેત્રમાં મારણાન્તિક સમુદ્રઘાત કરીને પશ્ચિમ . ચરમાન્તમાં-રત્નપ્રભા પૃથ્વીના પશ્ચિમ ચરમન્તમાં અને સમય ક્ષેત્રમાં થયેલા
SR No.009327
Book TitleBhagwati Sutra Part 17
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages812
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size54 MB
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