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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०३४ अ. श०१ विनहगत्या पकेन्द्रियजीवनिरूपणम् ३१९ यन्नाह-'तं जहा' इत्यादि, 'तं जहा' तद्यथा-'उज्ज्जुयायया सेढी' ऋज्वायता श्रेणिः सरला लम्बायमाना या श्रेणिः सा ज्यायता श्रेणिः 'सेढी' ति शब्दः सर्व. प्रापि अन्वेतपः 'एगयओ बंका' एकतो का एकतः कुटिछेत्यर्थः 'दुहमो चंका' द्विधात उभयतो वक्रेति तृतीया श्रेणि रिति३ । 'एगपओ खहा एकता खा-एकस्मिन् भागे प्रस नामकनाडी रहीताकाशवती श्रेणिः४ दुहओ खा' द्विधात उभयता खाउभय पार्श्वयो स्वसनाडी रहिताकाशवत्री श्रेणिः ५, 'चकवाला' चक्रवाला, मण्डलाकारसमाना ६, 'अद्ध चक्कनाला' अर्द्धचक्रवाला-अर्द्धमण्डलाकारेत्यर्थः ७। ता एताः सप्तश्रेणयो भवन्तीति । अथ यदर्थमियं श्रेणिर्दशिता तत्कार्य दर्शयतिप्रकार से हैं-'उज्जुयाययासे ढी' ऋज्वायता श्रेणि-जो सीधी लम्बी श्रेणि है वह ऋज्वायता श्रेणी है ! श्रेणि यह शब्द सर्वत्र लगा लेना चाहिए-'एगयओ वंका' एक तरफ जो श्रेणि वक्र होती है वह एकतो यका श्रेणी है। 'दुहओ वंका' द्विधावक श्रेणी जो-श्रेणी दोनों तरफ चक्र होती है वह द्विधा वक्र श्रेणी है । 'एगयओ खहा' एक तरफ जो श्रेणि त्रस नाडी से रहित होती है और केवल आकाशवाली होती है ऐसी वह एकतः खा श्रेणी हैं । 'दुहओ खा' दोनों तरफ जो श्रेणि प्रस नाडी से रहित होती है और केवल अकाशवाली होती है वह द्विधा खा आणि है। 'चक्कवालो' जो श्रेणि मण्डलाकारवाली होती है वह चक्रवाला श्रेणि है । जो श्रेणि उर्द्ध मण्डलाकारवाली होती है वह श्रेणि अर्द्ध मण्डलाकार वाली होती है, वह श्रेणी अर्द्ध चक्रवाला हैं । इस प्रकार से श्रेणियां सात होती हैं ! 'उज्जु आययाए से ढीए उवधज्जमाणे एगसमएणं विग्गहेणं उववज्जेज्जा' जो पृथिवीकायिक जीव ऋज्वायत श्रेणि से उत्पन्न होता हैं वह एक समय वाले વા વાયતા શ્રેણી કે જે સીધી લાંબી શ્રેણિ છે શ્રેણિઆ શબ્દ બધે જ લગાડી देवानन्ये 'एगयओवका' मे त२६ २ श्रेणी isी थाय छे. 'दुहओवका' દ્વિધાવક શ્રેણી કે જે શ્રેણી બને તરફથી વાંકી હોય છે, તે પ્રિધાન શ્રેણી हेवाय छे. 'एगयओ खहा' से त२५ २ श्रेणी सना पिनानी काय छ, स व माशवाणीय छ, सवीत मेत: मा श्रेणी छे. 'हलोखा' બને તરફથી જે શ્રેણી ત્રસનાડી રહિત હોય છે અને કેવળ આકાશવાળી હોય છે, તે દ્વિધા ખા શ્રેણી કહેવાય છે નવાઝા જે શ્રેણી મંડલાકાર વાળી દેય છે, તે ચકવાલા શ્રેણિ કહેવાય છે જે શ્રેણિ અર્ધ મલાકારવાળી હોય છે, તે અર્ધ ચકવાલા શ્રેણી કહેવાય છે. આ રીતે સાત શ્રેણી થાય छे. 'उज्जु आययाए सेढोए उबवजमाणे पगसमएणं विगहेण उववज्जेज्जा'
SR No.009327
Book TitleBhagwati Sutra Part 17
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages812
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size54 MB
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