SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 240
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २०८ भगवतीस्त्र यथा रत्नप्रभा पृथिव्याश्रित नारकाणामुत्पादादिः कथितः तथैव शर्करामभाधध। सप्तमीपृथिवी पर्यन्ताभिन भवसिद्धिक्षुल्ला कृतयुग्मनारकाणामपि उत्पादादितिव्य इति । एवं भवसिद्धिक खुड्डागयोगनेरइयावि' एवं भवसिद्धिक शुल्लक कृतयुग्मनारकरदेव भवसिद्धिक क्षुल्लययोजनारकाणामपि उत्पादादि तिध्य इति । ‘एवं जाव कलियोगत्ति' एवं यावत् कल्योज इति भवसिदिक क्षुल्लकन्योजनारकर देव भवसिद्धिक्क्षुल्लक द्वापरयुग्मनारक भवसिद्धिक क्षुल्लक प्रयोजनारकयोरपि उत्पादादि तिव्य इति । 'नवर परिमाण जाणियध्वं' नवरं ' से लेकर तमा पृथिवी नाम की ६ठी तक की पृथिवियों को ग्रहण हुआ है। तथा च-जैसा कयन रत्नप्रभा पृथिवी के आश्रित नारकों के उत्पा. दादि के सम्बन्ध में लिया गया हैं वैसा ही कथन शर्कराप्रभा से लेकर अधासप्तमी पृथिवीयों के आश्रित क्षुल्लक कृतयुग्म राशि प्रमाण भवसिद्धिक नैरयिकों के उत्पाद आदि के लम्बन्ध में भी कहना चाहिये । ‘एवं भवसिद्धिक खुड्डाग तेयोग ने हया दि' क्षुल्लक कृतयुग्म ‘राशिमित भवलिद्धिक नैरयिकों के जैसा ही क्षुद्र योज राशिप्रमित भवसिद्धिक भी जानना चाहिये, अर्थात् उनके उत्पादादि जैसा ही इनका भी उत्पादादि कहना चाहिये । 'एवं जाव कलिओगत्ति' और ऐसा ही उत्पादादि का कथन यावत् क्षुद्रकल्पोज राशिपमित भवसिद्धिक नैरयिकों में भी करना चाहिये, यहां यावत् शब्द से क्षुद्र द्वापर युग्म राशिप्रमित अवसिद्धिक नैरधिकों का ग्रहण हुआ है । 'नवर परि. છઠ્ઠી પૃથ્વી સુધીની પૃથ્વીથ ગ્રહણ કરાઈ છે. તથા–જે પ્રમાણે રત્નપ્રભા પૃથ્વીને આશ્રય કરીને નારકના ઉત્પાદ વિગેરેના સંબંધમાં કથન કરવામાં આવેલ છે, એ જ પ્રમાણેનું કથન શર્કરામભાથી લઈને અધઃસપ્તમી પૃથ્વી " સુધીની પૃથ્વીમાં રહેલા યુલક કૃતયુગ્મ રાશિપ્રાણ ભવસિદ્ધિક નૈરફિકે. ना 6416 विगेरेना विषयमा ५५ नु न .एवं भवसिद्धिक खुड्डाग 'तेयोग नेरइया वि' क्षु तयुग्म शशिप्रभाएर नैयिछीना ४थन प्रमाणे જ ક્ષુદ્ર જ રાશિપ્રમાણ ભવસિદ્ધિક નરયિકેનું કથન પણ સમજવું અર્થાત્ તેઓના ઉત્પાત વિગેરે પ્રમાણે જ આમના ઉત્પાદ વિગેરે પણ સમજવા . 'एवं जाव कलिओग त्ति' मन ॥ प्रमाणे या विशे२ स4 धाथन થાવત્ ક્ષુદ્ર કાજ રાશિ પ્રમાણે ભવસિદ્ધિક તૈકયિક સ બંધમાં પણ કહેવું • જોઈએ. અહિયાં યાવત્ શબ્દથી મુદ્ર દ્વાપર યુગ્મરાશિપ્રમાણ ભવસિદ્ધિક , नयि। अड़य थये छे. 'नवरं परिमाण जाणियव परतु मधे भिन्न-भिन्न
SR No.009327
Book TitleBhagwati Sutra Part 17
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages812
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size54 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy