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________________ १९२ भगपती क्षुल्लककृतयुग्मनारकस्य वक्तव्यता तथैव पद्धपमा नारकपृथिव्या धूमममा पृथिच्याश्रितनारकाणामपि वक्तव्यता ज्ञातव्या । ‘एवं च उसु वि जुम्मेमु' एवम् क्षुल्लककृतयुग्णवदेव चतुर्वपि युग्मेषु कृतयुग्मयोजद्वापरयुग्मल्योजरूपेष्वपि नीललेश्यनारकाणां वालुकाममा पङ्खामा धूमप्रभा तृतीयचतुर्थपञ्चमी पृथिव्या. श्रितानां वक्तव्यखा ज्ञातव्या । 'नवर परिमाणं जाणियध्वं' नवरं केवलं परिमाणं मिन्नभिन्नरूपेण तत्तत् युग्मे ज्ञातव्यं चतुरष्टद्वादश प्रभृति क्षुल्लक कृतयुग्मादि रूपं ज्ञातव्यमित्यर्थः । परिमाणं तत्तद्युग्मं ज्ञातव्यमिति तत्र केन रूपेण ज्ञातव्यम् , तत्राह-'परिमाणं' इति, 'परिमाणं जहा कण्हलेस्स उद्देसए' परिमाण यथा ' प्रमाण युक्त नारकों की भी वक्तव्यता औधिक नीललेश्यावाले कृतयुग्म राशि प्रमाणयुक्त नारको के जैस्ली ही है। एवं पंऋपभाए विधृमप्पभाए घि' जैसी बालुकाप्रमाश्रित नीललेश्य क्षुल्लक कृतयुग्मवाले नारक की वक्तव्यता है वैसी ही वक्तव्यता पङ्कप्रभा नारक पृथिवी के और धूमप्रापृथिवी के नारकों की भी है । 'एवं चउसु विजुम्मेसु क्षुल्लक कृतयुग्म के जैसा ही चारों युग्मों में-कृतयुग्म, योज, द्वापर और कल्पोज-इन युग्मों में भी बालुकाप्रमा, पङ्कप्रभा, धूमप्रभा इन तीन पृथिवियों के आश्रित हुए नीललेश्यावाले नारक जीवों की वक्तव्यता जाननी चाहिए । 'नवर परिमाणं जाणियन्वं' परन्तु उस-उस युग्म में परिमाण भिन्न-भिन्न रूप से जानना चाहिये । और वह परिमाण चार, आठ, बारह आदि क्षुल्लक कृतयुग्मादि रूप होता है ऐसा सम. जना चाहिये, इसी बात को 'परिमाणं जहा कण्हलेस्स उद्देनए' इस सूत्रपाठ द्वारा स्पष्ट किया गया है अर्थात्-कृष्णलेश्योद्देशक में जमा पभाए वि धूमप्पभाए वि' वायुप्रमा युटत नीवेश्यावाणा क्षुल्सर कृतयुभ નારકેનું કથન જે પ્રમાણે કહેલ છે, એ જ પ્રમાણેનું કથન પકભા નારક પૃથ્વીના અને ધૂમપ્રભા નારક પૃથ્વીના નારકના સંબંધમાં પણ કહેલ છે. 'एव चउसु वि जुम्मेसु' शुल्स तयुना ४थन प्रमाणे ४ २ २ युमोमा ५५ એટલે કે-કૃતયુગન, વ્યાજદ્વાપર અને કલ્યાજ આ યુએમાં પણ વાલુકાપ્રભા પંકપ્રભા, ધ્રુમપ્રભા, આ ત્રણ પૃથ્વીના આશ્રયવાળા નીલલેશ્યાવાળા નારક જીનું કથન સમજવું. 'नवर परिमाणं जाणियव्य' ५२d a युमामा परिणाम मnઅલગ હેવાનું સમજવું અને તે પરિણામ ચાર, આઠ, બાર વિગેરે ક્ષુલ્લક इतयुम विगेरे पापाणु: .य छे. तम सभा 1 'परिमाण जहा कण्हलेस्त्र उद्देसए' मा सूत्रद्वारा समावेश छे. अर्थात वेश्यावा -
SR No.009327
Book TitleBhagwati Sutra Part 17
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages812
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size54 MB
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