SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 205
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रमैयचन्द्रिका टीका श०३१ उ.१ सू०१ चतुर्युग्मनिरूपणम् रूपेण रत्नप्रभा क्षुल्लक योजनारकादारभ्य सप्तमीपृथिवी क्षुल्लक पोजनारक विषयेऽपि सर्वमवगन्तव्यमिति । आलापादिकश्च सर्वत्र स्वयमेवोहनीय इति । 'खुड्डाग दावरजुम्मनेरइयाणं भंते ! कओ उववज्जति' क्षुल्लकद्वापरयुग्म नैरयिकाः खलु भदन्त ! कुता-कस्मात् स्थानविशेषादागत्य नारकावासे समुत्पद्यन्ते ? इति प्रश्नः, भगवानाह-एवं जहेव' इत्यादि, 'एवं जहेव खुड्डागकडजुम्मे' एवं यथैव क्षुल्लककृतयुग्मः क्षुल्लककृतयुग्मनारकाणामुत्पादादिकं येन प्रकारेण पूर्व प्रतिपादितं तेनैव प्रकारेण संक्षेपविस्तराभ्यामिहापि सर्वमवगन्तव्यम् । 'नवरं परिमाणं दो वा, छ वा, दस वा, चौदस वा, खेज्जा वा, असं. खेज्मा वा, नवरं परिमाणं द्वौ वा षड् वा, दश वा, चतुर्दश वा संख्येया वा, चाहिए, आलापप्रकार इस सम्बन्ध में अपने आप उद्भावित करना चाहीये, एवं जाव अहे लत्तमाए' जिल रूपले औधिक क्षुल्लक योजराशि प्रमाण नैरयिकों के सम्बन्ध में कहा गया है उसी रूप से रत्नप्रभा क्षुल्लक योजराशी प्रमाण नैरयिकों से लेकर सप्तमी पृथिवी के क्षुल्लक योजराशि प्रमाणवाले नैरथिकों के विषय में भी सब कथन करना चाहिये । तथा इस सम्बन्ध में आलापादिक सर्वत्र अपने आप उद्भावित करना चाहिये। खुड्डाम दावर जुम्मनेरयाणं भंते ! को उववज्जति' हे भदन्त ! जो नैरथिक क्षुल्लकद्वापर युग्मराशि प्रमाण हैं वे नरकावास में कहां से आकर के उत्पन्न होते हैं ? हलके उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं-'एवं जहेव खुड्डाण काजुम' हे भौतम ! जैसा कथन क्षुल्लक कृतयुग्म गशि प्रमाणवाले नैरमिकों के उत्पातादि के सम्बन्ध में कहा गया है वैसा ही वह लमस्त कथन संक्षेप और विस्तार से यहां पर भी આવેલ છે એજ પ્રમાણે રત્નપ્રભાના ક્ષુલ્લક જરાશિ પ્રમાણવાળા નૈરવિકથી લઈને સાતમી પૃથ્વીને ક્ષુલ્લક જરાશિ પ્રમાણવાળા નરયિકના સંબંધમાં પણ સઘળું કથન કહેવું જોઈએ. તથા આ વિષયમાં આલાપ વિગેરે બધે જ સ્વયં બનાવીને સમજી લેવું જોઈએ. 'खुड्डाग दावरजुम्मनेरइया णे भते ! को उववज्जति' है पर ૌરયિક ક્ષુલ્લક દ્વાપરયુગ્મપ્રમાણુવાળા છે, તેઓ નરકાવાસમાં કયાંથી આવીને Brपन्न थाय छ ? म प्रश्न उत्तरमा प्रसुश्री छे -'एवं जहेव खड्डाग कड जुम्मे' गौतम क्षुद कृतयुग्मराशी अभावमा यिोनी पाठ વિગેરેના સ બ ધમાં જે પ્રમાણેનું કથન કરવામાં આવ્યું છે. એ જ પ્રમાણેનું ते ४थन सस ५ मने विस्तारथी मडिया ५ ४ नये. 'नवर परिमाण दो वा छ वा चोदस वा संखेज्जा वा असखेज्जा वा' ते ४थन ४२di l यिनमा
SR No.009327
Book TitleBhagwati Sutra Part 17
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages812
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size54 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy