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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०३१ उ.१ खू०१ चतुर्युग्मनिरूपणम् कुता-कस्मात्स्थानविशेषादागत्य नरकावासे उत्पद्यन्ते 'कि नेरइएहितो उवव. ज्जति तिरिक्खजोगिएहितो पुच्छा' किं नैरयिकेभ्य आगन्योत्पद्यन्ते किंवा तिर्य ज्योनिकेश्य आगत्योत्पद्यन्ते मनुष्येभ्यो वा भागस्योत्पद्यन्ते देवेभ्यो वा आग. स्योत्पचन्ते इति प्रश्नः पृच्छया संगृह्यते, भगवानाइ-गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'नो नेरइएहितो उववज्जति' नो नैरयि केल्य आगत्योत्पधन्ते क्षुल्लककृतयुग्यनैरयिकाः 'एवं नेरइयाणं उच्चायो जहा दक्कीए तहा भाणियो एवं नैरयिकाणामुपपातो यथा व्यु क्रान्तौ पज्ञापनायाः पष्ठे पदे कथित स्तथैव इहापि भणितव्यः प्रज्ञापनायाः षष्ठपदे अर्थात् एवं प्रतिपादितम्-नारका ने नैरयिकेभ्य आगत्योत्पद्यन्ते न वा देवेभ्य आगत्योत्पद्यन्ते किन्तु पञ्चेन्द्रिय 'खुड्डाग कडजुम्मनेरयाणं अंते ! को उववज्जति' हे भदन्त ! क्षुद्र कृतयुग्मराशि प्रमाण नैरयिक कहां ले-किल स्थान विशेष सेआकर के उत्पन्न होते हैं-नरकावाल में ले जन्म लेते हैं-'किनेर एरितो उववज्जति, तिरिक्ख जोणिएहितो पुच्छ।' क्या नरयिकों में से आकर के जन्म लेते हैं ? या तिर्यग्योनिकों में से आकर के जन्म लेते हैं ? या मनुष्यों में से आकर के जन्म लेते हैं ? या देवों में से आकर के जन्म लेते हैं ? उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं-'गोयमा ! नो नेरइएहितो उपवज्जति' क्षुद्र कृतयुग्मराशि प्रमाण नरयिक नैरयिकों में से आकर के उत्पन्न नहीं होते हैं एवं रहयाणं उवचाओ जहा वरतीए तहा भाणिय. व्वो' इस प्रकार से नरयिकों के उत्पाद जैसा प्रज्ञापना के छठे पद रूप व्युत्क्रन्ति पदमें कहा गया है वैसा ही यहां पर कहना चाहिये-तथाचनारक न नैरयिकों में से आकर के उत्पन्न होते हैं, न देवो में से 'खड्डागकडजुम्मनेरइयाणं भवे ! को उक्वज्जति' मगन् । क्षुदत યુમરાશિવાળા નૈરયિકો કયાંથી એટલે કે કથા સ્થાન વિશેષથી આવીને G५-1 थाय छे ? 'कि नेरइएहितो उववज्जति, तिरिक्व० पुच्छा' शु. નૈરયિકમાંથી આવીને જન્મ લે છે? અથવા તિર્યંચ નિકામાંથી આવીને જન્મ લે છે ? અથવા મનુષ્યમાંથી આવીને જન્મ લે છે ? અથવા દેવામાંથી भावाने सन्म से छे १ मा प्रश्नन। उत्तरमा प्रसुश्री हे छे -'गोयना नो नेरइएहितो। उबवज्जति' क्षुदनयुपराशी प्रभा नया , यि माथी भावी 6 था नथी 'एव नेरइयाण उबवाओं जहा वक्कतीए तहा भाणिચાવો આ પ્રમાણે નરયિકને ઉત્પાદ જે પ્રમાણે પ્રજ્ઞાપના સૂત્રના છઠ્ઠાં વ્યુત્કાન્તિપદમાં કહેલ છે, એ જ પ્રમાણે અહિયાં કહેવું જોઈએ અર્થાત્ નારક નરયિકમાંથી આવીને ઉત્પન્ન થતા નથી. તથા માંથી આવીને પણ भ० २१
SR No.009327
Book TitleBhagwati Sutra Part 17
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages812
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size54 MB
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